पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/२१९

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यह कहकर उन्होंने जोहरा को घूघट उठा दिया। जोहरा ने ठट्टा मारा। दारोगाजी मानो फिसलकर विस्मय-सागर में पड़े । बोले-अरे, तुम हो जोहरा । तुम यहां कहाँ ?

जोहरा–अपनी ड्यूटी बजा रही हूँ।

'और रमानाथ कहां गए? तुम्हें तो मालूम ही होगा?

‘वह तो मेरे यहां आने के पहले ही चले गए थे। फिर मैं यहीं बैठ गई और जालपा देवी से बात करने लगी।'

'अच्छा, जरा मेरे साथ आओ। उनका पता लगाना है।'

जोहरा ने बनावटी कौतूहल से कहा-क्या अभी तक बंगले पर नहीं पहुंचे ?

'ना। न जाने कहां रह गए।'

रास्ते में दारोगा ने पूछा-जालपा कब तक यहां से जाएगी ?

जोहरा-मैंने खूब पट्टी पढ़ाई है। उसके जाने की अब जरूरत नहीं है। शायद रास्ते पर आ जाय। रमानाथ ने बुरी तरह डांटा है। उनकी धमकियों से डर गई है।

दारोगी-तुम्हें यकीन है कि अब यह कोई प्रारारत न करेगी?

जोहरा-हां, मेरा तो यही ख़याल है।

दारोगा तो फिर यह कहां गया?

जोहरा–कह नहीं सकती।

दारोगा-मुझे इसकी रिपोर्ट करनी होगी। इंस्पेक्टर साहब और डिप्टी साहब को इत्तला देना जरूरी है। ज्यादा पी तो नहीं गया था?

जोहरा–पिए हुए तो थे ।

दारोगा तो कहीं गिर-गिरा पड़ा होगा। इसने बहुत दिक किया तो मैं जरा उधर जाता हूं।

तुम्हें पहुंचा दें, तुम्हारे घर तक?

जोहरा–बड़ी इनायत होगी।

दारोगा ने जोहरा को मोटर साइकिल पर बिठा लिया और उसको जरा दर में घर के दरवाजे पर उतार दिया, मगर इतनी देर में मन चंचल हो गया। बोले-अब तो जाने को जी नहीं चाहता, जोहरा! चलो, आज कुछ गप-शप हो । बहुत दिन हुए, तुम्हारी करम की निगाह नहीं हुई।

जोहरा ने जीने के ऊपर एक कदम रखकर कहा-जाकर पहले इंस्पेक्टर साहब से इत्तला तो कीजिए। यह गप-शप का मौका नहीं है।

दारोगा ने मोटर साइकिल से उतरकर कहा-नहीं, अब न जाऊंगा, जोहरा ! सुबह देखी जायेगी। मैं भी आता है।

जोहरा-आप मानते नहीं हैं। शायद डिप्टी साहिब आते हों। आज उन्होंने कहला भेजा था।

दारोगा-मुझे चकमा दे रही हो जोहरा। देखो, इतनी बेवफाई अच्छी नहीं।

जोहरा ने ऊपर चढ़कर द्वार बंद कर लिया और ऊपर जाकर खिड़की से सिर निकालकर बोली-आदाब अर्ज।