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220 : प्रेमचंद रचनावली-5
 


              पचास

दारोगा घर जाकर लेट रहे। ग्यारह बज रहे थे। नींद खुली, तो आठ बज गए थे। उठकर बैठे ही थे कि टेलीफोन पर पुकार हुई। जाकर सुनने लगे। डिप्टी साहब बोल रहे थे—इस रमानाथ ने बड़ा गोलमाल कर दिया है। उसे किसी दूसरी जगह ठहराया जायगा। उसका सब सामान कमिश्नर साहब के पास भेज देना होगा। रात को वह बंगले पर था या नहीं?

दारोगा ने कहा-जी नहीं, रात मुझसे बहाना करके अपनी बीवी के पास चला गया था?

टेलीफोन-तुमने उसको क्यों जाने दिया? हमको ऐसा डर लगता है, कि उसने जज से सब हाल कह दिया है। मुकदमों की जांच फिर से होगा। आपसे बड़ा भारी ब्लंडर हुआ है। सारा मेहनत पानी में गिर गया। उसको जबरदस्ती रोक लेना चाहिए था।

दारोगा-तो क्या वह जज साहब के पास गया था?

डिप्टी–हां साहब, वहीं गया था, और जज भी कायदा को तोड़ दिया। वह फिर से मुकदमा का पेशी करेगा। रमा अपना बयान बदलेगा। अब इसमें कोई डाउट नहीं है और यह सब आपका बंगलिग है। हम सब उस बाढ़ में बह जायगा। जोहरा भी दगा दिया।

दरोगा उसी वक्त रमानाथ का सब सामान लेकर पुलिस-कमिश्नर के बंगले की तरफ चले। रमा पर ऐसा गुस्सा आ रहा था कि पावें तो समूचा ही निगल जाएं। कमबख्त को कितना समझाया, कैसी-कैसी खातिर की; पर दगा कर ही गया। इसमें जोहरा की भी सांठ-गांठ है।

बीवी को डांट-फटकार करने का महज बहाना था। जोहरा बेगम की तो आज ही खबर लेता हूं। कहां जाती है। देवीदीन से भी समझूंगा।

एक हफ्ते तक पुलिस-कर्मचारियों में जो हलचल रही उसका जिक्र करने की कोई जरूरत नहीं। रात की रात और दिन के दिन इसी फिक्र में चक्कर खाते रहते थे। अब मुकदमे से कहीं ज्यादा अपनी फिक्र थी। सबसे ज्यादा घबराहट दारोगा को थी। बचने की कोई उम्मीद नहीं नजर आती थी। इंस्पेक्टर और डिप्टी--दोनों ने सारी जिम्मेदारी उन्हीं के सिर डाल दी और खुद बिल्कुल अलग हो गए।

इस मुकदमे की फिर पेशी होगी, इसकी सारे शहर में चर्चा होने लगी। अंगरेजी न्याय के इतिहास में यह घटना सर्वथा अभूतपूर्व थी। कभी ऐसा नहीं हुआ। वकीलों में इस पर कानूनी बहसें होतीं। जज साहब ऐसा कर भी सकते हैं? मगर जज दृढ़ था। पुलिसवालों ने बड़े-बड़े जोर लगाए, पुलिस कमिश्नर ने यहां तक कहा कि इससे सारा पुलिस विभाग बदनाम हो जायगा, लेकिन जज ने किसी की न सुनी। झूठे सबूतों पर पंद्रह आदमियों की जिंदगी बरबाद करने की जिम्मेदारी सिर पर लेना उसकी आत्मा के लिए असह्य था। उसने हाईकोर्ट को सूचना दी और गवर्नमेंट को भी।

इधर पुलिस वाले रात-दिन रमा की तलाश में दौड़-धूप करते रहते थे, लेकिन रमा न जाने कहां जा छिपा था कि उसका कुछ पता ही न चलता था। हफ्तों सरकारी कर्मचारियों में लिखा-पढ़ी होती रही। मानों कागज स्याह कर दिए गए। उधर समाचार-पत्रों में इस मामले पर नित्य आलोचना होती रहती थी। एक पत्रकार ने जालपा से मुलाकात की और उसका बयान छाप दिया। दूसरे ने जोहरा का बयान छाप दिया। इन दोनों