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256 :प्रेमचंद रचनावली-5
 

सात

अमरकान्त ने आम जलसों में बोलना तो दूर रहा, शरीक होना भी छोड़ दिया; पर उसकी आत्मा इस बंधन से छटपटाती रहती थी और वह कभी- कभी सामयिक पत्र-पत्रिकाओं में अपने मनोद्गारों को प्रकट करके संतोष लाभ करता था। अब वह कभी-कभी दूकान पर भी आ बैठता। विशेषकर छुट्टियों के दिन तो वह अधिकतर दूकान पर रहता था। उसे अनुभव हो रहा था कि मानवी प्रकृति का बहुत-कुछ ज्ञान दूकान पर बैठकर प्राप्त किया जा सकता है। सुखदा और रेणुका दोनों के स्नेह और प्रेम ने उसे जकड़ लिया था। हृदय की जलन जो पहले घर वालों से, और उसके फलस्वरूप, समाज से विद्रोह करने में अपने को सार्थक समझती थी, अब शांत हो गई थी। रोता हुआ बालक मिठाई पाकर रोना भूल गया।

एक दिन अमरकान्त दूकान पर बैठा था कि एक असामी ने आकर पूछा-- भैया कहां हैं बाबूजी, बड़ा जरूरी काम था?

अमर ने देखा-अधेड़, बलिष्ठ, काला, कठोर आकृति का मनुष्य है। नाम है काले खां। रुखाई से बोला-वह कहीं गए हाए हैं। क्या काम है?

"बड़ा जरूरी काम था। कुछ कह नहीं गए, कब तक आएंगे?"

अमर को शराब की ऐसी दुर्गध आई कि उसने नाक बंद कर ली और मुंह फेरकर बोला-क्या तुम शराब पीते हो?

काले खां ने हंसकर कहा--शराब किसे मयस्सर होती है लाला, रुखी रोटिया तो मिलती नहीं? आज एक नातेदारी में गया था, उन लोगों ने पिला दी।

वह और समीप आ गया और अमर के कान के पास मुंह लगाकर बोला--एक रकम दिखाने लाया था। कोई दस तोले की होगी। बाजार में ढाई सौ से कम नहीं है, लेकिन मैं तुम्हारा पुराना असामी हूं। जो कुछ दे दोगे, ले लूंगा।

उसने कमर से एक जोङा सोने के कड़े निकाले और अमर के सामने रख दिए। अमर ने कड़ों को बिना उठाए हुए पूछा-यह कड़े तुमने कहाँ पाए?

काले खां ने बेहयाई से मुस्कराकर कहा- यह न पूछो राजा, अल्लाह देने वाला है।

अमरकान्त ने घृणा का भाव दिखाकर कहा--कहीं से चुरा लाए हांगे?

काले खां फिर हंसा-चोरी किसे कहते हैं राजा, यह तो अपनी खती है। अल्लाह ने सबके पीछे हीला लगा दिया है। कोई नौकरी करके लाता है, कोई मजूरी करता है, कोई रोजगार करता है, देता सबको वही खुदा है। तो फिर निकलो रुपये, मुझे देर हो रही हैं। इन लाल पगड़ी वालों की बड़ी खातिर करनी पड़ती है भैया, नहीं एक दिन काम न चले।

अमरकान्त को यह व्यापार इतना जघन्य जान पड़ा कि जी में आया काले खां को दुत्कार दे। लाला समरकान्त ऐसे समाज के शत्रुओं से व्यवहार रखते हैं, यह खयाल करके उसके रोएं खड़े हो गए। उसे उस दूकान से, उस मकान से, उस वातावरण से, यहां तक कि स्वयं अपने आपसे घृणा होने लगी। बोला-मुझे इस चीज की जरूरत नहीं है। इसे ले जाओ, नहीं मैं पुलिस में इत्तिला कर दूंगा। फिर इस दूकान पर ऐसी चीज लेकर न आना, कहे देता हूं।