पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/३३

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गबन : 33
 



कहीं नौकरी-चाकरी का सहारा? रमेश ने ताक पर से मुहरे और बिसात उतारते हुए कहा–आओ एक बाजी हो जाए, फिर इस मसले को सोचें। इसे जितना आसान समझ रहे हो, उतना आसान नहीं है। अच्छे-अच्छे धक्के खा रहे हैं।

रमानाथ- मेरा तो इस वक्त खेलने को जी नहीं चाहता। जब तक यह प्रश्न हल न हो जाय, मेरे होश ठिकाने नहीं लेंगे।

रमेश बाबू ने शतरंज के मुहरे बिछाते हुए कहा-आओ बैठो। एक बार तो खेल लो, फिर सोचें, क्या हो सकता है।

रमानाथ–जरा भी जी नहीं चाहता, मैं जानता कि सिर मुड़ाते ही ओले पड़ेंगे, तो मैं विवाह के नज़दीक ही न जाता।

रमेश-अजी, दो-चार चालें चलो तो आप-ही जी लग जायगा। जरा अक्ल की गांठ तो खुले।

बाजी शुरू हुई। कई मामूली चालों के बाद रमेश बाबू ने रमा का रुख़ पीट लिया।

रमानाथ-ओह, क्या गलती हुई।

रमेश बाबू की आंखों में नशे की-सी लाली छाने लगी। शतरंज उनके लिए शराब से कम मादक न था। बोले-बोहनी तो अच्छी हुई । तुम्हारे लिए मैं एक जगह सोच रहा हूं। मगर वेतन बहुत कम है,केवल तीस रुपये। वह रंगी दाढ़ी वाले खां साहब नहीं हैं, उनसे काम नहीं होता। कई बार बता चुका है। सोचता था, जब तक किसी तरह काम चले, बने रहें। बाल-बच्चे वाले आदमी हैं। वह तो कई बार कह चुके हैं, मुझे छुट्टी दीजिए। तुम्हारे लायक तो वह जगह नहीं है,चाहो तो कर लो।

यह कहते-कहते रमा का फीला मार लिया।

रमा ने फीले को फिर उठाने की चेष्टा करके कहा-आप मुझे बातों में लगाकर मेरे मुहरे उड़ाते जाते हैं, इसकी सनद नहीं, लाओ मेरा फीला।

रमेश—देखो भाई, बेईमानी मत करो। मैंने तुम्हारा फीला जबरदस्ती तो नहीं उठाया। हां,तो तुम्हें वह जगह मंजूर है?

रमानाथ-वेतन तो तीस है।

रमेश-हां, वेतन तो कम है, मगर शायद आगे चलकर बढ़ जाय। मेरी तो राय है, कर लो।

रमानाथ-अच्छी बात है, आपकी सलाह है तो कर लूंगा।

रमेश- जगह आमदनी की है। मियां ने तो उसी जगह पर रहते हुए लड़कों को एम० ए०,एल. एल. बी० करा लिया। दो कॉलेज में पढ़ते हैं। लड़कियों की शादियां अच्छे घरों में कीं। हां,जरा समझ-बूझकर काम करने की जरूरत है।

रमानाथ-आमदनी की मुझे परवा नहीं, रिश्वत कोई अच्छी चीज तो है नहीं।

रमेश–बहुत खराब,मगर बाल-बच्चों के आदमी क्या करें। तीस रुपयों में गुजर नहीं हो सकती। मैं अकेला आदमी हूं। मेरे लिए डेढ़ सौ काफी हैं। कुछ बचा भी लेता हूं,लेकिन जिस घर में बहुत से आदमी हों, लड़कों की पढ़ाई हो, लड़कियों की शादियां हों, वह आदमी क्या कर सकता है। जब तक छोटे-छोटे आदमियों का वेतन इतना न हो जाएगा कि वह भलमनसी के साथ निर्वाह कर सकें, तब तक रिश्वत बंद न होगी। यही रोटी-दाल, घी-दूध तो वह भी