पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/३६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
362:प्रेमचंद रचनावली-5
 

सुखदा चली गई। दिन-भर किसी ने कुछ न खाया।

नौ बजे रात को नैना ने आकर कहा-दादा, आरती में न जाइएगा?

लालाजी चौंके—हां-हां जाऊंगा क्यों नहीं? तुम लोगों ने कुछ खाया कि नहीं? नैना बोली—किसी की इच्छा ही न थी। कौन खाता?

"तो क्या उसके पीछे सारा घर प्राण देगा?"

सुखदा इसी समय तैयार होकर आ गई। बोली-जब आप ही प्राण दे रहे हैं, तो दूसरों पर बिगड़ने का आपको क्या अधिकार है?

लालाजी चादर ओढ़कर जाते हुए बोले—मेरा क्या बिगड़ा है कि मैं प्राण दूं? यहां था, तो मुझे कौन-सा सुख देता था? मैंने तो बेटे का सुख ही नहीं जाना। तब भी जलाता था, अब भी जला रहा है। चलो, भोजन बनाओ, मैं आकर खाऊंगा। जो गया, उसे जाने दो। जो हैं उन्हीं को उस जाने वाले की कमी पूरी करनी है। मैं क्या प्राण देने लगा? मैंने पुत्र को जन्म दिया। उसका विवाह भी मैंने किया। सारी गृहस्थी मैंने बनाई। इसके चलाने का भार मुझ पर है। मुझे अब बहुत दिन जीना है। मगर मेरी समझ में यह बात नहीं आती कि इस लौंडे को यह क्या सूझी? पठानिन की पोती अप्सरा नहीं हो सकती। फिर उसके पीछे यह क्यों इतना लट्टू हो गया? उसका तो ऐसा स्वभाव न था। इसी को भगवान् की लीला कहते हैं।

ठाकुरद्वारे में लोग जमा हो गए। लाला समरकान्त को देखते कई सज्जनों ने पूछा—अमर कहीं चले गए क्या सेठजी। क्या बात हुई?

लालाजी ने जैसे इस वार को काटते हुए कहा—कुछ नहीं, उसकी बहुत दिनों से घूमने- घामने की इच्छा थी, पूर्वजन्म का तपस्वी है कोई, उसका बस चले, तो मेरी सारी गृहस्थी एक दिन में लुटा दे। मुझसे यह नहीं देखा जाता। बस, यही झगड़ा है। मैंने गरीबी का मजा भी चखा है; अमीरी का मजा भी चखा है। उसने अभी गरीबी का मजा नहीं चखा। साल- छ: महीने उसका मजा चख लेगा, तो आंखें खुल जाएंगी। तब उसे मालूम होगा कि जनता की सेवा भी वही लोग कर सकते हैं, जिनके पास धन है। घर में भोजन का आधार न होता तो मेंबरी भी न मिलती।

किसी को और कुछ पूछने का साहस न हुआ। मगर मूर्ख पूजारी पूछ ही बैठा-सुना. किसी जुलाहे की लड़की से फंस गए थे?

यह अक्खड़ प्रश्न सुनकर लोगों ने जीभ काटकर मुंह फेर लिए। लालाजी ने पुजारी को रक्त-भरी आंखों से देखा और ऊंचे स्वर में बोले-हां फंस गए थे, तो फिर? कृष्ण भगवान् एक हजार रानियों के साथ नहीं भोग किया था? राजा शान्तनु ने मछुए की कन्या से नहीं भोग किया था? कौन राजा है, जिसके महल में सौ दो-सौ रानियां न हों। अगर उसने किया तो कोई नई बात नहीं की। तुम जैसों के लिए यही जवाब है। समझदारों के लिए यह जवाब है कि जिसके घर में अप्सरा-सी स्त्री हो, वह क्यों जूठी पत्तल चाटने लगा? मोहन भोग खाने वाले आदमी चबैने पर नहीं गिरते।

यह कहते हुए लालाजी प्रतिमा के सम्मुख गए पर आज उनके मन में वह श्रद्धा न थी दुःखी आशा से ईश्वर में भक्ति रखता है, सुखी भय से दुःखी पर जितना ही अधिक दुःख पड़े, उसकी भक्ति बढ़ती जाती है। सुखी पर दुःख पड़ता है, तो वह विद्रोह करने लगता