पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४५९

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कर्मभूमि:459
 

कर्मभूमि : 459 भी दांतों तले उंगली दबाते थे। सलोनी मेरी भावज लगती है। उसने उनके मुंह पर थूक दिया था। यह उसे न करना चाहिए था। पागलपन था और क्या? मियां साहब आग हो गए और बुदिया को इतने हंटर जमाए कि भगवान् ही बचाए तो बचे। मुदा वह भी है अपनी धुन की पक्की, हरेक हंटर पर गाली देती थी। जब बेदम होकर गिर पड़ी, तब जाकर उसका मुंह बंद हुआ। चैया उसे काकी.-काकी करते रहते थे। कहीं से आवें. सबसे पहले काकी के पास जाते थे। उठने लायक होती तो जरूर-से-जरूर आती। आत्मानन्द ने चिढ़कर कहा-अरे तो अब रहने भी दे, क्या सब आज ही कह डालोगे? पानी मंगवा, आप हाथ-मुंह धोए, जरा आराम करने दे, थके-मांदे आ रहे हैं वह देखो, सलोनी को भी खबर मिल गई, लाठी टेकती चली आ रही है । सलोनी ने पास आकर कहा-कहां हा देवरजी, मावन में आने तो तुम्हारे साथ झूला झलती, चले हो कातिक में । जिसका ऐसा सरदार र एप बेटा, उसे किसको डर और किसकी चिंता ! तुम्हें देखकर सारा दु:ख भूल गई, देवरजी ।। समरकान्त ने देखा-सलोनी की भारी दह मूज उठी है और साः। पर लहू के दाग रकर कत्थई हो गए हैं। मुंह मूजा हुआ है। इस मुद्दे पर इतना क्रोध | उस पर विद्वान् बनता है। उनकी आंखों में त्रिने उतर आया। हिंसा- विना मन में प्रचंड हो उठ। निर्बल क्रोध और चाहे कुछ न कर सके, भगवान का बुबा जरूर लेता है। तुम अंत हो. अर्वशक्तिमान हो ना के रक्षक हो और तुम्हारी आं के सामने यह अधेर | इस जगत का नियंता कोई नहीं कोई दयामय भगवान मृरिट का वादा होता, तो यह अत्याचार न होता । अच्छे सर्वशक्तिमान T! क्यों नरिपशाचों के हृदय में नहीं पैठ जात, या वहां तुमारी पहुंच नहीं हैं? कहते हैं, यह पत्र भगवान् की लीला है। अच्छी नीला हे ! अगर तुम्हें इस व्यापार की खबर नहीं हैं, तो

      • सर्वव्यापी क्यों कहलाते हो।

| समरकान्त धार्मिक प्रवृत्ति के दिनों में। धर्म-ग्रंथों का अध्ययन किया था। भगवद्गीता का नित्य पाठ किया करते थे, पर इसे ममय वह मारा धर्मज्ञान उन्हें पाखंर -या प्रतीत हुआ। | वह उसी तरह उड़ खड़े हुए और पुछा- सलीम तो सदर में होगा? आत्मानन्द ने कहा- आजकल त यहीं पड़ाव है। डाक बंगले में ठहरे हुए हैं। "मैं जरा उनसे मिलेगा। अभी वह क्रोध में हैं, आप मिलकर क्या कीजिए। आपको भी अपशब्द कह न। “यही देखने तो जाता हूँ कि मनुष्य को पशुता किस सीमा तक जा सकती है। तो चलिए, मैं भी आपके साथ चलता हूं। गृदड़ बोल उठे-नहीं-नहीं, तुम न जइयो, स्वामीजी भैया, इ हैं तो संन्यासी और दया के अवतार, मुदा क्रोध में भी दुर्वासा मुनि से कम नहीं हैं। जब हाकिम साह ? सलोनी की मार रहे थे, तब चार आदमी इन्हें पकड़े हुए थे, नह। उस बखत मियां का खून चूस नते, चाहे पीछे से फांसी हो जाती। गांव भर की मरहम-पट्टी इन्हीं के सुपुर्द है। सलोनी ने समरकान्त का हाथ पकड़कर कहा-मैं चलूंगी तुम्हारे साथ देवरजी। उसे दिखा दूगी कि बुदिया तेरी छाती पर मूंग दलने को बैठी हुई है । तू मारनहार है, तो कोई तुझसे बेड़ा रोखनहार भी है। जब तक उसका हुकम न होगा, तू क्या मार सकेगा ।