पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/९७

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गबन : 97
 


कहीं के ये तुम्हारा ही लिखा

रमानाथ–दे दो, क्यों परेशान करती हो ।

रमा ने फिर कागज छीन लेना चाहा; पर जालपा ने हाथ पीछे फेरकर कहा-मैं बिना पढ़े न दूंगी। कह दिया ज्यादा जिद करोगे, तो फाड़ डालूंगी।

रमानाथ-अच्छा फाड़ डालो।

जालपा–तब तो मैं जरूर पढूंगी।

उसने दो कदम पीछे हटकर फिर खत को खोला और पढ़ने लगी।

रमा ने फिर उसके हाथ से कागज छीनने की कोशिश नहीं की। उसे जान पड़ा, आसमान फट पड़ा है, मानो कोई भंयकर जंतु उसे निगलने के लिए बढ़ा चला आता है। वह धड़-धड़ करता हुआ ऊपर से उतरा और घर के बाहर निकल गया। कहां अपना मुंह छिपा ले? कहां छिप जाए कि कोई उसे देख न सके? उसकी दशा वही थी, जो किसी नंगे आदमी की होती है। वह सिर से पांव तक कपड़े पहने हुए भी नंगी था। आह | सारा परदा खुल गया | उसकी सारी कपट-लीला खुल गई । जिन बातों को छिपाने की उसने इतने दिनों चेष्टा की, जिनको गुप्त रखने के लिए उसने कौन-कौन-सी कठिनाइयां नहीं झेलों, उन सबों ने आज मानो उसके मुंह पर कालिख पोत दी। वह अपनी दुर्गति अपनी आंखों से नहीं देख सकता। जालपा की सिसकियां, पिता की दिग्दकियां, पड़ोसियों की कनफ़सकियां सुनने की अपेक्षा मर जाना कहीं आसान होगा। जब कोई संसार में न रहेगा, तो उसे इसकी क्या परवा होगी, कोई उसे क्या कह रहा है। हाय । केवल तीन सौ रुपयों के लिए उसका सर्वनाश हुआ जा रहा है, लेकिन ईश्वर की इच्छा है, तो वह क्या कर सकता है। प्रियजनों की नजरों से गिरकर जिए तो क्या जिए।

जालपा उसे कितना नीच, कितनो कपटी, कितना धूर्त, कितना गपोड़िया समझ रही होगी। क्या वह अपना मुंह दिखा सकता है?

क्या संसार में कोई ऐसी जगह नहीं है, जहां वह नए जीवन का सूत्रपात कर सके, जहां वह संसार से अलग-थलग सबसे मुंह मोड़कर अपना जीवन काट सके। जहां वह इस तरह छिप जाय कि पुलिस उसका पता न पा सके। गंगा की गोद के सिवा ऐसी जगह और कहां थी। अगर जीवित रहा, तो महीने-दो महीने में अवश्य ही पकड़ लिया जाएगा। उस समय उसकी क्या दशा होगी–वह हथकड़ियां और बेड़ियां पहने अदालत में खड़ा होगा। सिपाहियों का एक दल उसके ऊपर सवार होगा। सारे शहर के लोग उसका तमाशा देखने जाएंगे। जालपा भी जाएगी। रतन भी जाएगी। उसके पिता, संबंधी, मित्र, अपने-पराए-सभी भिन्न-भिन्न भावों से उसकी दुर्दशा का तमाशा देखेंगे। नहीं, वह अपनी मिट्टी यों न खराब करेगा, न करेगा। इससे कहीं अच्छा है, कि वह डूब मरे !

मगर फिर खयाल आया कि जालपा किसकी होकर रहेगी ! हाय, मैं अपने साथ उसे भी ले डूबा | बाबूजी और अम्मांजी तो रो-धोकर सब्र कर लेंगे, पर उसकी रक्षा कौन करेगा? क्या वह छिपकर नहीं रह सकता? क्या शहर से दूर किसी छोटे-से गांव में वह अज्ञातवास नहीं कर सकता? संभव है, कभी जालपा को उस पर दया आए, उसके अपराधों को क्षमा कर दे। संभव है, उसके पास धन भी हो जाए, पर यह असंभव है कि वह उसके सामने आंखें सीधी कर सके। न जाने इस समय उसकी क्या दशा होगी । शायद मेरे पत्र को आशय समझ गई हो। शायद परिस्थिति का उसे कुछ ज्ञान हो गया हो। शायद उसने अम्मां को मेरा पत्र दिखाया हो और दोनों