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प्रकार यह ग्रंथ खड़ी बोली के आरंभिक काल का होने से और कृष्ण-कथा के कारण मान्य समझा जाता है, नहीं तो इसमें किसी प्रकार की गुण नहीं है ।

अस्तु, जो कुछ हो, यह संस्करण अपने असली रूप में पाठको के आगे रखा जाता है। अब यह उन्हीं लोगों पर निर्भर है कि इसे अपनाकर संपादन के कार्य-श्रम को सफल करें। इस संपादन कार्य में बा० श्यामसुंदरदासजी ने गुरुवत् मेरी बहुत सहायता की है, जिसके लिये यह लिखना कि मैं उनका अत्यंत अनुगृहीत हूँ, अनावश्यक है।

कृष्णजन्माष्टमी । }

सं० १९७९    }  व्रजरतनदास