ली । इतने में गोपी जो देखे तो तीर पै चीर नहीं, तब घबराकर चारों ओर उठ उठ लग देखने औ आपस में कहने कि अभी तो यहाँ एक चिड़िया भी नहीं आई, बसन कौन हर ले गया माई। इस बीच एक गोपी ने देखा कि सिर पर मुकुट, हाथ में लणकुट, केसर तिलक दिये, बनमाल हिये, पीतांबर पहरे, कपड़ों की गड़ी बॉधे, मौन साधे, श्रीकृष्ण कदंब पै चढ़े छिपे हुए बैठे हैं। वह देखते ही पुकारी-सखी, बे देखो हमारे चितचोर चोरचोर कदंब पर पोट लिए विराजते है। यह बचन सुन और सब युवती कृष्ण को देख लजाय, पानी में पैठ, हाथ जोड़ सिर नाय, विनती कूर हा हा खाय बोलीं-
दीन दयाल, हरन दुख प्यारे । दीजै मोहन, चीर हमारे ।।
ऐसे सुनके कहे कन्हाई । यो नहि दू़ँगा नंद दोहाई ।।
एक एक कर बाहर आओ । तो तुम अपने कपड़े पाओ ।।
ब्रजबाला रिसाय के बोली-यह तुम भली सीख सीखे हो जो हमसे कहते हो नंगी बाहर आओ, अभी अपने पिता बंधु से जाय कहे तो वे तुम्हे चोर चोर कर आय गहे, हे नंद जसोदा को जा सुनावे, तो वे भी तुमको सीख भली भांति से सिखाये । हम करती है किसी की कान, तुमने मेटी सब पहचान ।
इतनी बात के सुनतेही क्रोध कर श्रीकृष्णजी ने कहा कि अब चीर तभी पाओगी जब विनको लिवा लावोगी, नही तो नहीं । यह सुन डरकर गोपी चोलीं, दीनदयाल हमारी सुध के लिवैया, पति के रखैया तो आप है, हम किसे लावेगी । तुम्हारेही हेतु नेम कर मगसिर मास न्हारी हैं। कृष्ण बोले-जो तुम मन लगाय मेरे लिये अगहन न्हाती हो तो लाज औ कपट तज आय अपने