प्रनाम कर आपस मे कहने लगे कि इस भॉति इंद्र ने कब दरसन दिया था, हम वृथा उसकी पूजा किया किये और क्या जानिये पुरुषाओ ने ऐसे प्रत्यक्ष देव को छोड़ क्यो इंद्र को माना था, यह बात समझी नहीं जाती ।
यो सब बतराय रहे थे कि श्रीकृष्ण बोले-अब देखते क्या हो, जो भोजन लाये हो सो खिलाओ । इतना वचन सुनते ही गोपी गोप षटरस भोजन थाल परातो में भर भर उठाय उठाय लगे देने और गोवर्द्धननाथ, हाथ बढ़ाय बढ़ाय ले ले भोजन करने । निदान जितनी सामग्र नंद समेत सब ब्रजबासी ले गये सो खाई, तब वह मूरत पर्वत में समाई । इस भॉति अद्भुत लीला कर श्रीकृष्णचंद सबको साथ ले पर्वत की परिक्रमा दे दूसरे दिन गोवर्द्धन से चल हँसते खेलते बृदावन आए । तिस काल घर घर आनंद मंगल बधाए होने लगे और ग्वाल बाल सब गाय बछड़ो को रंग रंग उनके गले में गंडे घंटालियाँ घूँघरू बाँध बाँध न्यारे ही कुतूहल कर रहे थे ।