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धार्मिक विचारों में प्रोत्साहन, मानसिक विकारों में उत्तेजना और देवता पर श्रद्धा झटपट उत्पन्न कराई जा सकती है। गहन विषयो के ग्रंथ भिन्न भिन्न देशी या जातियों की सभ्यता के अनुगामी होते है। ज्यों ज्यो कोई जाति अधिक उन्नति करती जाती है, त्यो त्यो उसके साहित्य के विषय भी अधिक गहन होते जाते है। कुछ समय पहले जिस एक शब्द से एक विषय के सब शास्त्री का बोध हो जाता था, उससे अब उस विषय की किसी एक शाखा मात्र का बोध होता है। इन गहन विषयों के लिए जब गद्य की आवश्यकता पड़ती है, तब उसकी उत्पत्ति आप से आप हो जाती है।

हिंदी साहित्य में भी यही हुआ है। पद्य जो अस्वाभाविक है। वह तो पहिले ही बिना प्रयत्न के बन गया, पर जो स्वाभाविक और नित्यप्रयुक्त है, उसे बनाने का अभी तक प्रयत्न होता जा रहा है। हिंदी कविता का आरंभ-काल तो आठवीं शताब्दी से माना जाता है और गद्य का जन्म हुए केवल एक शताब्दी माना गया है। इस पर भी अभी इस गद्य का स्वरूप पूर्ण रूप से निश्चित और सर्वग्राह्य नहीं हुआ है। कोई उसे अपने देश के अलंकारों से सजाना चाहता है तो कोई उसे फारस के अलंकारों और वस्त्रों से अच्छादित करना चाहता है। पद्य में ब्रज भाषा, अवधी, खड़ी बोली आदि का जो झमेला है, वही बहुत है। फिर गद्य को जिसे बहुत सा रास्ता तै करना है, क्यो व्यर्थ इतनी ड्रिल कराई जाती है, यह नहीं कहा जा सकता।

हिंदी की उत्पत्ति के विषय में अभी तक यही निश्चित हुआ है कि यह प्राकृत के रूपांतर अपभ्रंश अर्थात् चीन हिंदी से बिगड़ कर बनी है अब यह देखना चाहिए कि यह हिंदी शब्द कहाँ से