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इतनी कथा कह श्रीशुकदेव मुनि ने राजा से कहा कि पृथीनाथ इस रीति से तो सब यदुबंसी बलदेवजी का व्याह कर लाए, और श्रीकृष्णाचदजी आपही भाई को साथ ले कुंडलपुर में जाय, भीष्मक नरेस की बेटी रुक्मिनी, सिसुपाल की माँग को राक्षसो से युद्ध कर छीन लीए। उसे घर में लाय ब्याह लिया।

यह सुन राजा परीक्षित ने श्रीशुकदेवजी से पूछा कि कृपा- सिधु, भीष्मकसुता रुक्मिनी को श्रीकृष्णवंद कुँउलपुर में जाय असुरो को मार किस रीति से लाए, सो तुम मुझे समझाकर कहो। श्रीशुकदेवजी बोले कि महाराज, आप मन लगाये सुनिये मैं सब भेद वहाँ का समझाकर कहता हूँ कि विदर्भ देश में कुंंडलपुर नाम एक नगर तहाँ भीष्मक नाम नरेस, जिसका जस छाय रहा चहुँ देस। उनके घर में जाय श्रीसीताजी ने औतार लिया। कन्या के होतेही राजा भीष्मक ने ज्योतिषियों को बुलाय भेजा। जिन्होंने आय लग्न साध उस लडकी का नाम रुक्मिनी धरकर कहा कि महाराज, हमारे विचार में ऐसा आता है कि यह कन्या अति सुशील सुभाव, रूपनिधान, गुनो में लक्ष्मी समान होगी और आदिपुरुष से व्याही जायगी।

इतना बचन ज्योतिषियों के मुख से निकलते ही राजा भीष्मक ने अति सुख भान बड़ा आनंद किया औ बहुत सा कुछ ब्राह्मनों को दिया। आगे वह लड़की चंद्रकला की भाँति दिन दिन बढ़ने लगी, और बाललीला कर कर मात पिता को सुख देने। इसमें कुछ बड़ी हुई तो लगी सखी सहेलियों के साथ अनेक अनेक प्रकार के अनूठे अनूठे खेल खेलने। एक दिन वह मृगनैनी, पिक- बैनी, चंपकवदनी, चंदमुखी सखियों के संग आँखमिचौली खेलने