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बेटे बहू को घर मे लिया। उस समय क्या स्त्री क्या पुरुष सब यदुवंसियो ने आय, मंगलाचार कर अति आनन्द किया। घर धर बधाई बाजने लगी औ सारी द्वारकापुरी मे सुख छाय गया।

इतनी कथा सुनाय श्रीशुकदेवजी ने राजा परीक्षित से कहा कि महाराज, ऐसे प्रद्युम्नजी जन्म ले बालकपन अनल बिताय रिपु को मार रति को ले द्वारकापुरी मे आए तब घर घर आनन्द मंगल हुए बधाए।