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और इनके पिता कृष्णभक्ति-प्रचार के प्रधान उन्नायकों में थे और हिदी के ही द्वारा इन लोगों ने अपनी सदुपदेशरूपी अमृतमयी धारा को प्रवाहित किया था। ये लोग स्वयं कविता नहीं करते थे पर इनके शिष्यों में सूरदास, नंददास आदि ऐसे प्रसिद्ध कवि हो गए है। इन्होने अपने पिता के चार शिष्यो सूरदास, परमानंद- दास, कुंभनदास और कृष्णदास को और अपने चार शिष्यों गोविद स्वामी, छीतस्वामी, चतुर्भुजदास और नंददास को छॉट- कर अछाप मे रखा था। इनके सात पुत्र हुए जो सभी विद्वान् और भगवद्भक्त थे। इनके अनंतर सात गदियाँ स्थापित हुईं। गोविट्ठलनाथजी का माघ ०७ सं १६४२ वि० को स्वर्गवास हुआ। कैटेलोगस कैटालोगोरम के अनुसार इन्होने ४९ ग्रंथों की संस्कृत मे रचना की है। हिंदी में श्रृंगाररसमंडन नामक एक गद्य- ग्रंथ का प्रणयन किया है जो वास्तव में हिंदी साहित्य का प्रथम गद्यग्रंथ है । यह व्रज भाषा मे है। उदा०-

'प्रथम की सखी कहतु है। जो गोपीजन के चरण विषै- सेवक की दासी करि जो इनको प्रेमामृत में डूवि कै इनके मंद हास्य ने जीते है । अमृत समूह ताकरि निकुंज विषै श्रृंगार रस श्रेष्ठ रसना कीनो सो पूर्ण होत भई ।'

गोस्वामी श्रीगोकुलनाथजी‌

ये श्रीवल्लभाचार्यजी महाप्रभु के पौत्र और गोस्वामी विठ्ठल नाथजी के पुत्र थे। ये सात भाई थे जिनके नाम श्रीगिरधरजी, श्रीगोविंदजी, श्रीबालकृष्णजी, श्रीगोकुलनाथजी, श्रीरघुनाथजी,