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श्रीयदुनाथजी, और श्रीघनश्यामजी थे। इन्होने 'चौरासी बैष्णवों की वार्ता, २५२ बैष्णवों की वार्ता' और 'वनयात्रा' नामक तीन पुस्तके लिखी हैं । प्रथम दोनों पुस्तको से तत्कालीन कई महात्माओ और कवियो के समय निश्चित करने में सहायता मिली है। इनमें द्वितीय पुस्तक जॉच करने पर इनकी रचना नहीं ज्ञात होती। वनयात्रा को मिश्रबंधुविनोद में महाप्रभु की रचना लिखा है, परंतु वह गोस्वामी विट्ठलनाथजी की प्रथम यात्रा और मौखिक कृति होने पर भी श्रीगोकुलनाथजी द्वारा पुस्तक रूप में परिणत हुई है। इसमे ब्रज की चौरासी कोस की परिक्रमा का वर्णन है। गोस्वा- मीजी ने साधारण ब्रज भाषा में भक्तो के चरित्र और तीर्थो वर्णन किए हैं। उदा०-(वनयात्रा से)

सं० १६०० भाद्रपद वदी १२ को सैन आरती उतारि पाछे श्रीगुसाईंजी मथुरा पधारे ब्रज की यात्रा करिबे को सो तहाँ प्रथम श्रीमथुराजी में श्रीकृष्णाजी को प्रागट्य भयो है तहाँ कारागृह की ठौर है, पोतरा कुंड के मंदिर के पिछवारे होय के तहाँ श्रीमथुराजी मे विश्रातघाट है तहाँ श्रीआचार्यजी महाप्रभु की बैठक है तहाँ कंस को मारि कै श्रीकृष्ण ने विश्राम कियो है तहाँ श्रीठाकुरजी स्नान करिकै श्रम निवारण कियो है तहाँ सब मथुरा के ब्रजभक्तन ने श्रीठाकुरजी की गिनती कीनी है ताते विश्रांतघाट मुख्य है ।'

नंददासजी‌

ये अष्टछाप के कवि थे और गोस्वामी तुलसीदासजी के गुरु- भाई थे। ये स्वामी विट्ठलनाथजी के शिष्य तथा कान्यकुब्ज ब्राह्मण