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कर सुभगदंत के सीस पर हाथ धरा और अपने डर से उसे निडर करा। तब भौमावती भौमासुर की स्त्री बहुत सी भेट हरि के आगे धर, अति विनती कर हाथ जोड़, सीस झुकाय, खड़ी हो बोली-

हे दीनदयाल, कृपाल, जैसे आपने दरसन दे हम सबको कृतार्थ किया, तैसे अब चलकर मेरा घर पवित्र कीजै। इस बात के सुनतेही अन्तरयामी भक्तहितकारी श्रीमुरारी भौमासुर के घर पधारे। उस काल वे दोनो माँ बेटे हरि को पाटंबर के पाँवड़े डाल घर मे ले जाय सिंहासन पर बिठाय, अरघ दै चरनामृत ले अति दीनता कर बोले-हे त्रिलोकीनाथ, आपने भला किया, जो इस महा असुर का वध किया। हरि से विरोध कर किसने संसार में सुख पाया? रावन कुम्भकरन कंसादि ने बैर कर अपना जी गँवाया। और जिसने आप से द्रोह किया तिस तिसका जगत मे नामलेवा पानीदेवा कोई न रहा।

इतना कह फिर भौमावती बोली-हे नाथ, अब आप मेरी बिनती मान, सुभगदंत को निज सेवक जान, जो सोलह सहस्र राजकन्या इसके बाप ने अनब्याही रोक रक्खी हैं सो अंगीकार कीजे। महाराज, यो कह उसने सब राजकन्याओंको निकाल प्रभु के सोही पाँत का पाँत ला खड़ा किया। वे जगत उजागर, रूपसागर श्रीकृष्णचंद आनंदकंद को देखतेही मोहित हो, अति गिड़गिड़ाय, हा हा खाय, हाथ जोड़ बोलीं-नाथ जैसे आपने आय हम अबलाओ को इस महादुष्ट की बंध से निकाला, तैसे अब कृपा कर इन दासियो को साथ ले चलिये औ निज सेवा में रखिये तो भला।