पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २६ )

इनका समय सत्रहवीं शताब्दी विक्रमीय का मध्य है। यह कवि भी थे।
उदा॰—

श्रीवृंदावन विपें शरद रितु अरु वसंत रितु विमिश्रित सदा रहे हैं। श्रीवृंदावन सदा फुल्यौ रहै है सो तो वसंत को हेते हैं। अरु सदा निर्मल रहते हैं सो सरद को हेत है। औरहू जो रितु हें सो अपने समय पर सच ही आवे हैं। एक समै श्री प्रीतम जी रात्रि को हिरनि की निकुंज विषे विराजमान हे तहाँ वसंत मिश्रित सरद रितु हे।

अज्ञात

भुबनदीपिका नामक ग्रंथ के कर्ता का नाम, समय आदि का पता नही चलना। प्राप्त प्रति सं॰ १६७१ वि॰ की लिखी हुई है, इस कारण इसकी रचना इस संवत् के पूर्व की है। यह ज्योतिष विषयक ग्रंथ है जिसमें संस्कृत मूल और भाषा टीका सम्मिलित है।
उदा॰―

'जउ अस्त्री पुत्र तणी प्रछा करई। आठमइ नवमइ स्थानि एकलो शुक्र होई तउ स्वभाव रमतो कहिवउ। जउ बिजर शुभ ग्रह, होई उ संभोग सुखई कहिबउ।'

मनोहरदास निरंजनी

इन्होने ज्ञानपूर्ण वचनिका, सप्तप्रश्न निरंजन, ज्ञानमंजरी, षट्प्रश्नी वेदांत परिभाषा और षटप्रदर्शनीनिर्णय नामक ग्रंथ लिखे हैं। सं॰ १७०७ के आसपास ये पुस्तकें लिखी गई हैं।