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काहे से खेलोगे। इसमें राजा कलिंग बड़ी बात कह हँसा। यह चरित्र देख बलदेवजी नीचा सिर कर सोच विचार करने लगे, तब रुक्म ने दस करोड़ रुपये एक बार लगाए, सो बलरामजी ने जो जीतके उठाए तो सब धाँधलकर बोले कि यह रुक्म का पासा पड़ा तुम क्यौ रुपये समेटते हो।

सुनि बलराम फेर सब दीने। अर्व लगायौ पासे लीने॥

फिर हलधर जीते औ रुक्म हारा। उस समय भी रोगटी कर सब राजाओ ने रुक्म को जिताया और यो कह सुनाया-

जुआ खेल पासे का सार। यह तुम जानो कहा गँवार॥
जुआ युद्ध गति भूपति जाने। ग्वाल गोप गैयन पहचाने॥

इस बात के सुनते ही बलदेवजी का क्रोध यो बढ़ा कि जैसे पून्यौ को समुद्र की तरंग बढ़े। निदान जो तो कर बलरामजी ने क्रोध को रोक, मन को समझाय फिर सात सात अर्ब रुपये लगाये और चौपड़ खेलने लगे। फिर भी बलदेवजी जीते औ सबो ने कपट कर रुक्म ही को जीता कहा। इस अनीति के होते ही आकाश से यह बानी हुई कि हलधर जीते और रुक्म हारा। अरे राजाओ! तुमने क्यौं झूठ बचन उचारा। महराज, जब रुक्म समेत सब राजाओ ने आकाशबानी सुनी अनसुनी की, तब लो बलदेवजी महा क्रोध मे आय बोले-

करी सगाई बैर छाँड्यौ। हम सों फेर कलह तुम माँड्यौ।
मारौं तोहि अरे अन्याई। भलौ बुरौ मानहु भौजाई॥
अब काहूकी कान न करिहौ। आज प्रान कपटी के हरिहौं।

इतनी कथा कह श्रीशुकदेवजी ने राजा परीक्षित से कहा कि महाराज, निदान बलरामजीने सबके देखते रुक्म को मार डाला