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जाय कहियो, अपने घर जाय सभा कर सब राक्षसों को बुलाय कहने लगा कि मेरा बैरी आन पहुँचा है तुम सब दल ले ऊषा का मंदिर जाय घेरो, पीछे से मै भी आता हूँ। आगे इधर तो बानासुर की आज्ञा पाय सब राक्षसो ने आय ऊषा का घर घेरा औ उधर अनरुद्धजी औ राजकन्या निद्रा से चौंक पुनि सारपासे खेलने लगे। इसमें चौपड़ खेलते खेलते ऊषा क्या देखती है। कि चहुँ ओर से घनघोर घटा घिर आई, बिजली चमकने लगी, दादुर मोर, पपीहे बोलने लगे। महाराज, पपीहे की बोली सुनते ही राजकन्या इतना कह पिय के कंठ लगी–

तुम पपिहा पिय पिय मत करौ। यह वियोग भाषा परिहरौ॥

इतने मे किसीने जाय बानासुर से कहा कि महाराज, तुम्हारा बैरी जागा। बैरी का नाम सुनतेही बानासुर अति कोप करके उठा औ अस्त्र शस्त्र ले ऊषा की पौली मे आये खड़ा हुआ और लगा छिपकर देखने। निदान देखते देखते―

बानासुर यो कहै हँकार। को है रे तू गेह मझार॥
धन तन बरन मदन मन हारी। कँवलनैन पीतांबरधारी॥
अरे चोर बाहर किन आवै। जान कहां अब मोसो पावै॥

महाराज, जब बानासुर ने टेरके यो कहे बैन, तब ऊषा औ अनरुद्ध सुन और देख भये निपट अचैन। पुनि राजकन्या ने अति चिंता कर भयमान हो लंबी सॉस ले कंत से कहा कि महाराज, मेरा पिता असुरदल ले चढ़ि आया, अब तुम इसके हाथ से कैसे बचोगे।

तबहि कोप अनरुद्ध कहै. मत डरपै तू नारि।
स्यार झुंड राक्षस असुर, पल में डारों भारि॥