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कि मेरे भक्त पर भीड़ पड़ी है, इस समय चलकर उसकी चिन्ता मेटा चाहिये।

यह मनही मन बिचार जब पार्वतीजी को अर्द्धगधर, जटा जूट बॉध, भस्म चढ़ाय, बहुत सी भाँग और आक धतूरा खाय, स्वेत नागो का जनेऊ पहन, गजचर्म ओढ़, मुंडमाल, सर्पहार पहन, त्रिशूल, पिनाक, डमरू, खप्पर ले,. नांदिये पर चड़, भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी, भूतनी प्रेतनी, पिशाचिनी आदि सेना ले भोलानाथ चले, उस समै की कुछ शोभा बरनी नहीं जाती कि कान मे गजमनि की मुद्रा, लिलाट पै चंद्रमा, सीस पर गंग धरै, लाल लाल लोचन करै, अति भयंकर भेष, महाकाल की मूरत बनाये इस रीति से बजाते गाते सेना को नचाते जाते थे कि वह रूप देखेही बनि आवे, कहने मे न आवे। निदान कितनी एक बेर मे शिवजी अपनी सेना लिए वहॉ पहुँँचे कि जहाँ सब असुरदल लिये बानासुर खड़ा था। हर को देखतेही बानासुर हरष के बोला कि कृपासिधु, आप बिन कौन इस समय मेरी सुध ले।

तेज तुम्हारौ इनकौ दुहै। यादवकुल अब कैसे रहै॥

यो सुनाय फिर कहने लगा कि महाराज, इस समैं धर्म युद्ध करो औ एक एक के सनमुख हो एक एक लड़ो। महाराज, इतनी बात जो बानासुर के मुख से निकली तो इधर असुरदल लड़ने को तुल कर खड़ा हुआ औ उधर जदुबंसी आ उपस्थित हुए। दोनों ओर जुझाऊ बाजने लगे, शूर बीर रावत जोधा धीर शस्त्र अस्त्र साजने और अधीर नपुंंसक कायर खेत छोड़ छोड़ जी ले ले भागने लगे।