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दोउ सुनि बोले सिर नाय। अब रन ते उतन्यौ नहिं जाय॥

पुनि दुर्योधन बोला ,कि गुरुदेव, मैं आपके सनमुख झूठ नहीं भाषत, आप मेरी बात मन दे सुनिये। यह जो महाभारत युद्ध होता है औ लोग मारे गए औ मारे जाते है औ जायंगे, सो तुम्हारे भाई श्रीकृष्णचंदजी के मते से। पॉड व केवल श्रीकृष्णजी के बल से लड़ते है, नहीं इनकी क्या सामर्थ थी जो ये कौरवो से लड़ते। ये बापरे तो हरि के बस ऐसे हो रहे है, कि जैसे काठ की पुतली नटुए के बस होय, जिधर वह चलावे तिधर वह चले। उनको यह उचित न था, जो पॉडवो की सहायता कर हमसे इतना द्वेष करे। दुसासने की भीम से भुजा उखड़वाई औ मेरी जॉघ मे गदा लगवाई। तुमसे अधिक हम क्या कहेगे इस समय

जो हरि करे सोई अब होय। या ते जाने सब कोय॥

यह वचन दुर्योधन के मुख से निकलतेही इतना कह बलरामजी श्रीकृष्णचंद के निकट आए कि तुम भी उपाध करने में कुछ थट नही औ बोले कि भाई, तुमने यह क्या किया जो युद्ध करवाय दुसासन की भुजा उखड़वाई औ दुर्योधन की जॉच कटवाई। यह धर्मयुद्ध की रीति नही है कि कोई बलवान हो किसी की भुजा उखाड़े, कै कटि के नीचे शस्त्र चलावे। हॉ धर्ममुद्ध यह है कि एक एक को ललकार सनमुख शस्त्र करै। श्रीकृष्णचंद बोले कि भाई, तुम नहीं जानते ये कौरव बड़े अधर्मी अन्याई है। इनकी अनीति कुछ कही नहीं जाती। पहले इन्होने दुसासन शकुनी भगदंत के कहे जुआ खेल कपट कर राजा युधिष्ठिर का सर्वस जीत लिया। दुसासन द्रौपदी के हाथ पकड़ लाया