पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/४२९

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इससे उसके हाथ भीमसेन ने उखाड़े। दुर्योधन ने सभा के बीच द्रौपदी को जॉघ पर बैठने को कहा, इससे उसकी जॉघ काटी गई।

इतना कह पुनि श्रीकृष्णचंद बोले कि भाई, तुम नहीं जानते इसी भॉतिंं की जो जो अनीति कौरवो ने पॉडवो के साथ की है, सो हम कहॉ तक कहैगे। इससे यह भारत की आग किसी रीति से अब न बुझेगी, तुम इसका कुछ उपाय मत करो। महाराज, इतना बचन प्रभु के मुख से निकलते ही बलरामजी कुरक्षेत्र से चलि द्वारका पुरी में आये औ राजा उग्रसेन सूरसेन से भेट कर हाथ जोड़ कहने लगे कि महाराज, आपके पुन्य प्रताप से हम सब तीरथ यात्रा तो कर आए पर एक अपराध हमसे हुआ। राजा उग्रसेन बोले― सो क्या? बलरामजी ने कहा― महाराज, नीमषार में जाय हमने सूतको मारा तिसकी हत्या हमें लगी। अब आपकी आज्ञा होय तो पुनि नीमपार जाय, यज्ञ के दरसन कर तीरथ न्हाय, हत्या का पाप मिटाये आवे, पीछे ब्राह्मण-भोजन करवाय जात को जिमावे जिससे जग में जस पावे। राजा उग्रसेन बोले― अच्छा आप हो आइये। महाराज, राजा की आज्ञा पाय बलरामजी कितने एक जदुबंसियों को साथ ले, नीमषार जाय स्नान दान कर शुद्ध हो आए। पुनि प्रोहित को बुलाय होम कर्वाय ब्राह्मन जिमाय, जात को खिलाय लोक रीति कर पवित्र हुए। इतनी कथा कह श्रीशुकदेवजी बोले–महाराज,

जो यह चरित सुने मन लाय। ताकौ सबही पाप नसाय॥