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जब यह बात कहे तब और की किसने चलाई। मन ही मन सब मुनियो ने जद इतना कहा तद नारदजी बोले―,

सुनौ सभा तुम सब मन लाये। हरि माया जानी नहीं जाय॥

ये आपही ब्रह्मा हो उपजावते है विष्णु हो पालते हैं, शिव हो संहारते हैं। इनकी गति अपरंपार है, इसमे किसी की बुद्धि कुछ काम नहीं करती, पर इतना इनकी कृपा से हम जानते हैं कि साधो को सुख देने को औ दुष्टो के मारने को औ सनातन धर्म चलाने को, बार बार औतार ले प्रभु आते हैं। महाराज, जो इतनी बात कह नारदजी सभा से उठने को हुए, तो बसुदेवजी सनमुख आय हाथ जोड़ विनती कर बोले कि हे ऋषिराय, मनुष संसार में आय कर्म से कैसे छूटे, सो कृपा कर कहिये। महाराज यह बात बसुदेवजी के मुख से निकलतेही सब मुनि ऋर्षि नारदजी का मुख देख रहे। सब नारदजी ने मुनियों के मन का अभिप्राय समझकर कहा कि हे देवताओं, तुम इस बात का अचरज मत करो, श्रीकृष्ण की माया प्रबल है, इसने संसार को जीत रखा है, इसीसे बसुदेवजी ने यह बात कही औ दूसरे ऐसे भी कहा है कि जो जन जिसके समीप रहता है वह उसका गुन प्रभाव औ प्रताप माया के बस हो नहीं जानता, जैसे―

गंगाबासी अनतहि जाई। तज के गंग कूप जल न्हाइ॥
योही यादव भए अयाने। नाहो कछू कृष्णगति जाने॥

इतनी बात कह नारदजी ने मुनियो के मन का संदेह मिटाय, बासुदेवजी से कहा कि महाराज, शास्त्र में कहा है, जो नर तीरथ, दान, तप, ब्रत, यज्ञ करता है सो संसार के बंधन से छूट परम गति पाता है। इस बात के सुनते ही प्रसन्न हो बसुदेवजी ने