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( ५ )


पाट देकर कहा-बेटा, गौ ब्राह्मन की रक्षा कीजो औ प्रजा को सुख दीजो ‌। इतनी कह आये रनवास, देखी नारी सबी उदास ।

राजा को देखते ही रानियां पॉओ पर गिर रो रो कहने लगींमहाराज, तुम्हारा बियोग हम अबला न सह सकेगी, इससे तुम्हारे साथ जी दे तो भला । राजा बोले-सुनो, स्त्री को उचित है जिसमें अपने पति का धर्म रहे सो करे, उत्तम काज में बाधा न डाले ।

इतना कह धन जन कुटुंब औ राज की माया तज निरमोही हो अपना जोग साधने को गंगा के तौर पर जा बैठा । इसको जिसने सुना वह हाय हाय कर पछताय पछताये बिन रोये न रहा, और यह समाचार जब मुनियों ने सुना कि राजा परीक्षित श्रृंगी ऋषी के श्राप से मरने को गंगा तीर पर आ बैठा है तब ब्यास, वशिष्ठ, भरद्वाज, कात्यायन, परासर, नारद, विश्वामित्र, वामदेव, जमदग्नि आदि अट्टासी सहस्र ऋषि आए और आसन बिछाय बिछाय पाँत पाँत बैठ गये । अपने अपने शास्त्र विचार विचार अनेक अनेक भांति के धर्म राजा को सुनाने लगे, कि इतने में राजा की श्रद्धा देख, पोथी कॉख में लिये दिगंबर भेष, श्रीशुकदेवजी भी आन पहुँचे । उनको देखते ही जितने मुनि थे सबके सब उठ खड़े हुए और राजा परीक्षित भी हाथ बाँध खड़ा हो विनती कर कहने लगी–कृपा-निधान, मुझपर बड़ी दया की जो इस समै आपने मेरी सुध ली। इतनी बात कही तब शुकदेव मुनि भी बैठे तो राजा ऋषियों से कहने लगे कि महाराज, शुकदेवजी ब्यासजी के तो बेटे और परासरजी के पोते तिनको देख तुम बड़े