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नंद बोले―गर्गजी, तुमने सच कहा। इतना कह घर के भीतर ले जाय बैठाया। तब गर्ग मुनि ने नंदजी से दोनों की जन्मतिथि औ समै पूछ लगन साध, नाम ठहराय कहा―सुनो नंदजी, वसुदेव की नारि रोहनी के पुत्र के तो इतने नाम होयँगे, संकर्पण, रेवनीरमण, बलदाऊ, बलराम, कालिदीभेदन, हलघर औ बलवीर, औ कृष्ण रूप जो तुम्हारा लड़का है विसके नाम तो अनगिनत है पर किसी समय वसुदेब के यहाँ जन्मा, इससे वासुदेव नाम हुआ औ मेरे विचार में आता है कि ये दोनों बालक तुम्हारे चारों युग में जब जन्मे हैं तब साथ ही जन्मे है।

नंदजी बोले―इनके गुन कहो। गर्ग मुनि ने उत्तर दिया―ये दूसरे विधाती हैं, इनकी गति कुछ जानी नहीं जाती, पर मैं यह जानता हूँ कि कंस को मार भूमि का भार उतारेगे। ऐसे कह गर्ग मुनि चुपचुपाते चले गये और बसुदेव को जो सब समाचोर कहे।

आगे दोनों बालक गोकुल में दिन दिन चढ़ने लगे और बाललीला कर कर नंद जसोदा को सुख देने। नीले पीले झगुले पहन माथे पर छोटी छोटी लटूरियाँ बिखरी हुई, साइत गंड़े बाँधे, कठले गले में डाले, खिलोने हाथों में लिये खेलते, ऑगन के बीच घुटनो चल चल गिर गिर पड़े और तोतली तोतली बाते करे। रोहनी औ जसोदा पीछे लगी फिरे, इसलिये कि मत कहीं लड़के किसी से डर ठोकर खा गिरे। जब छोटे छोटे बछड़ो और बछियाओं की पूँछ पकड़ पकड़ उठे और गिर गिर पड़े तब जसोदा और रोहनी अति प्यार से उठाय छाती से लगाय दूध पिलाय भाँति भाँति के लाड लड़ावे।