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कैलास—अगर कहीं बात खुल गई, तो?

नईम—तो यह मेरी समझ का फेर, मेरे अनुसंधान का दोष, मानव प्रकृति के एक अटल नियम का उज्ज्वल उदाहरण होगा! मैं कोई सर्वज्ञ तो हूँ नहीं। मेरी नीयत पर आँच न आने पावेगी। मुझपर रिशवत लेने का संदेह न हो सकेगा। आप इसके व्यवहारिक कोण पर न जाइये, केवल नैतिक कोण पर निगाह रखिये। यह कार्यनीति के अनुकूल है या नहीं? आध्यात्मिक सिद्धान्तों को न खींच लाइयेगा, केवल नीति के सिद्धान्तों से इसकी विवेचना कीजिये।

कैलास—इसका एक अनिवार्य फल यह होगा, कि दूसरे रईसों को भी ऐसे दुष्कृत्यों की उत्तेजना मिलेगी। धन से बड़े-से-बड़े पापों पर परदा पड़ सकता है, इस विचार के फैलने का फल कितना भयंकर होगा, इसका आप स्वयं अनुमान कर सकते हैं।

नईम—जी नहीं, मैं यह अनुमान नहीं कर सकता। रिशवत अब भी नब्बे फी सदी अभियोगों पर परदा डालती है। फिर भी पाप का भय प्रत्येक के हृदय में है।

दोनो मित्रों में देर तक इस विषय में तर्क-वितर्क होता रहा; लेकिन कैलास का न्याय-विचार नईम के हास्य और व्यंग्य से पेश न पा सका।

(४)

विष्णुपुर के हत्याकांड पर समाचार-पत्रों में आलोचना होने लगी। सभी पत्र एक स्वर से राजा साहब को ही लांछित करते और गवर्नमेंट को राजा साहब का अनुचित पक्षपात करने का दोष लगाते थे लेकिन इसके साथ यह भी लिख देते थे, कि अभी यह अभियोग विचाराधीन है; इसलिए इस पर टीका नहीं की जा सकती।

मिरज़ा नईम ने अपनी खोज को सत्य का रूप देने के लिए पूरे एक महीने व्यतीत किये। जब उनकी रिपोर्ट प्रकाशित हुई, तो राजनीतिक क्षेत्र में विप्लव मच गया। जनता के संदेह की पुष्टि हो गई।

कैलास के सामने अब एक जटिल समस्या उपस्थित हुई। अभी तक