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पंच-परमेश्वर

आवभगत ज़्यादा करने लगा। वे मिलते-जुलते थे मगर उसी तरह, जैसे तलवार से ढाल मिलती है।

जुम्मन के चित्त में मित्र की कुटिलता आठों पहर खटका करती थी। उसे हर घड़ी यही चिंता रहती थी, कि किसी तरह बदला लेने का अवसर मिले।

(६)

अच्छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है; पर बुरे कर्मों की सिद्धि में यह बात नहीं होती। जुम्मन को भी बदला लेने का अवसर जल्द ही मिल गया। पिछले साल अलगू चौधरी बटेसर से बैलों की एक बहुत अच्छी गोई मोल लाये थे। बैल पछाही जाति के सुन्दर, बड़े-बड़े सींगोंवाले थे। महीनो तक आस-पास के गाँवों के लोग उनके दर्शन करते रहे। दैवयोग से जुम्मन की पंचायत के एक ही महीने बाद इस जोड़ी का एक बैल मर गया। जुम्मन ने दोस्तों से कहा—यह दगाबाज़ी की सज़ा है। इन्सान सब भले ही कर जाय; पर खुदा नेक-बद सब देखता है। अलगू को संदेह हुआ, कि जुम्मन ने बैल को विष दिला दिया है। चौधराइन ने भी जुम्मन पर ही उस दुर्घटना का दोषारोप किया। उसने कहा—जुम्मन ने कुछ कर करा दिया है। चौधराइन और करीमन में इस विषय पर एक दिन खूब ही वाद-विवाद हुआ। दोनो देवियों ने शब्द-बाहुल्य की नदी बहा दी। व्यङ्ग, वक्रोक्ति, अन्योक्ति और उपमा आदि अलंकारों में बातें हुईं। जुम्मन ने किसी तरह शान्ति स्थापित की। उसने अपनी पत्नी को डाँट-डपटकर समझा दिया। वह उसे उस रणभूमि से हटा भी ले गये। उधर अलगू चौधरी ने समझाने-बुझाने का काम अपने तर्क-पूर्ण सोंटे से लिया।

अब अकेला बैल किस काम का? उसका जोड़ बहुत ढूँढ़ा गया; पर न मिला। निदान यह सलाह ठहरी, कि इसे बेच डालना चाहिये। गाँव में एक समझू साहु थे, वह इक्का-गाड़ी हाँकते थे। गाँव से गुड़-घी लादकर मंडी ले जाते, मंडी से तेल-नमक भर लाते और गाँव में बेचते। इस बैल पर उनका मन लहराया। उन्होंने सोचा यह बैल हाथ