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प्रेम-द्वादशी

देना चाहते थे। जिससे फिर किसी को पशुओं के साथ ऐसी निर्दयता करने का साहस न हो। अन्त में जुम्मन ने फैसला सुनाया--अलगू चौधरी और समझू साहु ! पंचों ने तुम्हारे मामले पर अच्छी तरह विचार किया। समझू को उचित है, कि बैल का पूरा दाम दे। जिस वक्त उन्होंने बैल लिया, उसे कोई बीमारी न थी। अगर उसी समय दाम दे दिये जाते, तो आज समझू उसे फेर लेने का आग्रह न करते । बैल की मृत्यु केवल इस कारण हुई, कि उससे बड़ा कठिन परिश्रम लिया गया, और उसके दाने-चारे का कोई अच्छा प्रबन्ध न गया।

रामधन मिश्र बोले--समझू ने बैल को जान-बूझकर मारा है, अतएव उससे दण्ड लेना चाहिये ।

जुम्मन बोले--यह दूसरा सवाल है । हमको इससे कोई मतलब नहीं।

झगडू साहु ने कहा--समझू के साथ कुछ रियायत होनी चाहिये।

जुम्मन बोले--यह अलगू चौधरी की इच्छा पर निर्भर है । वह रिया- यत करें, तो उनकी भलमनसी है।

अलगू चौधरी फूले न समाये । उठ खड़े हुए, और जोर से बोले- पंच-परमेश्वर की जय !

चारों ओर से प्रतिध्वनि हुई—-पंच-परमेश्वर की जय !

प्रत्येक मनुष्य जुम्मन की नीति को सराहता था-इसे कहते हैं न्याय । यह मनुष्य का काम नहीं, पंच में परमेश्वर वास करते हैं। यह उन्हीं की महिमा है। पंच के सामने खोटे को कौन खरा कर सकता है ?

थोड़ी देर बाद जुम्मन अलगू के पास आये, और उनके गले लिपटकर बोले--भैया, जब से तुमने मेरी पंचायत की तब से मैं तुम्हारा प्राण- घातक शत्रु बन गया था ; पर आज मुझे ज्ञात हुआ कि पंच के पद पर बैठकर न कोई किसी का दोस्त होता है, न दुश्मन । न्याय के सिवा उसे और कुछ नहीं सूझता । आज मुझे विश्वास हो गया, कि पंच की जबान से खुदा बोलता है।

अलगू रोने लगे। इस पानी से दोनो के दिलों का मैल धुल गया। मित्रता की मुरझाई हुई लता फिर हरी हो गई ।

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