मंगल का शुभ दिन था। बच्चे बड़ी बेचैनी से अपने दरवाज़ों पर खड़े गुरदीन की राह देख रहे थे ! कई उत्साही लड़के पेड़ों पर चढ़ गये, और कोई-कोई अनुराग से विवश होकर गाँव से बाहर निकल गये थे । सूर्य भगवान् अपना सुनहला थाल लिये पूरब से पश्चिम में जा पहुँचे थे, इतने ही में गुरदीन आता हुआ दिखाई दिया। लड़कों ने दौड़कर उसका दामन पकड़ा, और आपस में खींचातानी होने लगी। कोई कहता था, मेरे घर चलो ; कोई अपने घर का न्योता देता था । सब से पहले भानु- चौधरी का मकान । गुरदीन ने अपना खोंचा उतार दिया । मिटा- इयों की लूट शुरू होगई । बालकों और स्त्रियों का ठह लग गया। हर्ष और विषाद, संतोष, और लोभ, ईर्ष्या और लोभ, द्वेष और जलन की नाट्य- शाला सज गई। कानूनदाँ बितान की पत्नी अपने तीनो लड़कों को लिये हुए निकली। शान की पत्नी भी अपने दोनो लड़कों के साथ उपस्थित हुई। गुरदीन ने मीठी बातें करनी शुरू की। पैसे मोली में रखे, धेले की मिठाई दी और धेले-धेले का आशीर्वाद । लड़के दोने लिये उछलते-कूदते घर में दाखिल हुए। अगर सारे गाँव में कोई ऐसा बालक था, जिसने गुरदीन की उदारता से लाभ न उठाया हो, तो वह बाँके गुमान का लड़का धान था।
यह कठिन था, कि बालक धान अपने भाइयों-बहनों को हँस-हँस और उछल-उछलकर मिठाइयाँ खाते देखकर सब कर जाय । उस पर तुर्रा यह कि वे उसे मिठाइयाँ दिखा-दिखाकर ललचाते और चिढ़ाते थे। बेचारा धान चीखताऔर अपनी माता का आँचल पकड़-पकड़कर दरवाज़े की तरफ खींचता था; पर वह अबला क्या करे ? उसका हृदय बच्चे के लिए ऐंठ-ऐंठकर रह जाता था। उसके पास एक पैसा भी नहीं था। अपने दुर्भाग्य पर, जेठानियों की निष्ठुरता पर, और सब से ज़्यादा अपने पति के निखट्टपन पर कुढ़-कुढ़कर रह जाती थी। अपना आदमी ऐसा निकम्मा न होता, तो क्यों दूसरों का मुँह देखना पड़ता, क्यों दूसरों के धक्के खाने पड़ते ? उसने धान को गोद में उठा लिया, और प्यार से दिलासा देने लगी-बेटा, रोओ मत, अबकी गुरदीन आवेगा, तो मैं तुम्हें बहुत-सी मिठाई ले दूंगी, मैं इससे अच्छी मिठाई बाज़ार से मँगवा