पृष्ठ:प्रेम-द्वादशी.djvu/३

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भूमिका

हिन्दुस्तानी भाषाओं में कहानी का कोई इतिहास नहीं है। प्राचीन साहित्य में दृष्टान्तों और रूपकों ने प्रदेश का काम लिया जाता था। उस समय की वे ही गल्पें थीं। उनमें आध्यात्मिक विषयों का ही प्रतिपादन किया जाता था। महाभारत आदि ग्रन्थों में ऐसे कितने ही उपाख्यान और दृष्टान्त हैं, जो कुछ-कुछ वर्तमान समय की गल्लों से मिन्नते हैं । निइ मनवमी, बैतालपचीनी, कथासरित्सागर और इसी श्रेणी की अन्य कितनी ही पुस्तकें ऐसे ही दृष्टान्तों का संग्रह-मात्र हैं ; जिन्हें किसी एक सूत्र में पिरोकर मालाएँ तैयार कर दी गई हैं। योरप का प्राचीन साहित्य भी Short Story से यही काम लेता था । आज- कल जिम वस्तु को हम Short Story कहते हैं, वह उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तराई का आविष्कार है। भारतवर्ष में तो इसका प्रचार उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दिनों में ही हुआ है। उपन्यासों की भाँति आख्ता- यिकाओं का विकास भी पहले-पहल बँगला साहित्य में हुआ, और बंकिमचंद्र तथा रवीन्द्रनाथ ने कई उच्चकोटि की गल्में लिखीं। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से हिन्दी-भाषा में कहानियां लिखी जाने लगी, और तब से इसका प्रचार दिन-दिन बढ़ता जाता है।

प्राचीन गल्पमालाओं का उद्देश्य मुख्य करके कोई उपदेश करना होता था। कितनी ही मालाएँ तो केवल स्त्रियों के चरित्र-दोष दिखाने के लिए ही लिखी गई हैं। मुसलिम-साहित्य में अलिफ़ लैला गल्पों का एक बहुत ही अनूठा संग्रह है ; मगर उसका उद्देश्य उपदेश नहीं ; बल्कि मनोरंजन है। इस दूसरी श्रेणी की गल्में भारतीय साहित्य में नहीं हैं । वर्तमान आख्यायिका का मुख्य उद्देश्य साहित्य-रसास्वादन कराना है, और जो कहानी इस उद्देश्य से जितनी दूर जा गिरती है, उतनी ही दूषित समझी जाती है।

लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि वर्तमान गल्प-लेखक कोरी गल्पें लिखता है, जैसी बोस्ताने-खयाल या तिलस्मे-होशरुबा हैं। नहीं, उसका