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पृष्ठ:प्रेम-द्वादशी.djvu/४

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उद्देश्य चाहे संदेश करना न हो; पर गल्पों का अचार कोई-न-काई दार्शनिक तत्व या सामाजिक विवेचना अवश्य होता है। ऐसी कहानी जिसमें जीवन के किमी अंग पर प्रकाश न पड़ता हो, जो सामाजिक रूढ़ियों की तीन आलोचना न करती हो, जो मनुष्य में सद्भावों को दृढ़ न करे या जो मनुष्य में कुतुहल का भाव न जाग्रत करे, कहानी नहीं है।

योरप और भारतवर्ष की आत्मा में बहुत अन्तर है । योरप की दृष्टि सुन्दर पर पड़ती है ; पर भारत की सत्य पर । सम्पन्न योरप मनोरंजन के लिए गल्प लिखें; लेकिन भारतवर्ष कभी इस आदर्श को स्वीकार नहीं कर सकता । नीति और धर्म हमारे जीवन के प्राण हैं। हम पराधीन हैं; लेकिन हमारी सभ्यता पाश्चात्य सभ्यता से कहीं ऊँची है। यथार्थ पर निगाह रखनेवाला योरप, हम आदर्शवादियों से जीवन-संग्राम में बाजी क्यों न ले जाय ; पर हम अपने परंपरागत संस्कारों का आधार नहीं त्याग सकते। साहित्य में भी हमें अपनी आत्मा की रक्षा करनी ही होगी। हमने उपन्याम और मल्ल का कलेवर योरप से लिया है । लेकिन हमें इसका प्रयत्न करना होगा कि उस कलेवर में भारतीय आत्मा सुरक्षित रहे ।

इस संग्रह में जो कहानियाँ दी जा रही हैं, उनमें, इसी आदर्श का पालन करने की चेष्टा की गई है। मेरी कुल कहानियों की ख्या २०० अधिक हो गई है और आजकल किसी को इतनी फ़ुरसत कहाँ कि वह सब कहानियाँ पढ़े। मेरे कई मित्रों ने मुझसे अपनी कहानियों का ऐसा संग्रह करने के लिए आग्रह किया, जिनमें मेरी सभी तरह की कहानियों के नमूने आ जाय । यह संग्रह उसी आग्रह का फल है । इसमें कुछ कहानियाँ ऐसी हैं, जो अन्य संग्रहों से ली गई हैं। उनके प्रकाशकों को धन्यवाद देना मेरा कर्तव्य है । कुछ कहानियाँ ऐसी हैं, जो अभी तक किसी

माला में नहीं निकलीं। इन कहानियों की आलोचना करना मेरा काम नहीं।हाँ, इतना मैं कह सकता हूँ कि मैंने नवीन कलेवर में भारतीय आत्मा को सुरक्षित रखने का प्रयत्न किया है।

-प्रेमचंद।