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प्रेम-द्वादशी

प्रबन्ध करो। इमर्तियाँ, लड्डू, रसगुल्ले मँगाओ। पेट भर भोजन कर लूँ। फिर आध सेर मलाई खाऊँगा, उसके ऊपर आध सेर बादाम की तह जमाऊँगा। बची-खुची कसर मलाईवाले दही से पूरी कर दूँगा। फिर देखूँगा, भूख क्योंकर पास फटकती है! तीन दिन तक तो साँस ही न ली जायगी, भूख की कौन चलावे। इतने में तो सारे शहर में खलबली मच जायगी। भाग्य का सूर्य उदय हुआ है, इस समय आगा-पीछा करने से पछताना पड़ेगा। बाज़ार न बन्द हुआ, तो समझ लो, मालामाल हो जाऊँगा। नहीं तो यहाँ गाँठ से क्या जाता है? सौ रुपए तो हाथ लग ही गये।

इधर तो भोजन का प्रबन्ध हुआ, उधर पंडित मोटेराम ने डौंड़ी पिटवा दी, कि संध्या-समय टाउन-हाल के मैदान में पंडित मोटेराम देश की राजनीतिक समस्या पर व्याख्यान देंगे, लोग अवश्य आवें। पंडितजी सदैव राजनीतिक विषयों से अलग रहते थे। आज वह इस विषय पर कुछ बोलेंगे, सुनना चाहिये। लोगों को उत्सुकता हुई। पण्डितजी का शहर में बड़ा मान था। नियत समय पर कई हज़ार आदमियों की भीड़ लग गई। पण्डितजी घर से अच्छी तरह तैयार होकर पहुँचे। पेट इतना भरा हुआ था, कि चलना कठिन था! ज्योंही वह वहाँ पहुँचे, दर्शकों ने खड़े होकर इन्हें साष्टांग दण्डवत्-प्रणाम किया।

मोटेराम बोले—नगर-वासियों, व्यापारियों, सेठों, और महाजनों, मैंने सुना है, तुम लोगों ने कांग्रेसवालों के कहने में आकर बड़े लाट साहब के शुभागमन के अवसर पर हड़ताल करने का निश्चय किया है। यह कितनी बड़ी कृतघ्नता है? वह चाहें, तो आज तुम लोगों को तोप के मुँह पर उड़वा दें, सारे शहर को खुदवा डालें। राजा हैं, हँसी-ठट्ठा नहीं। वह तरह देते जाते हैं, तुम्हारी दीनता पर दया करते हैं, और तुम गउओं की तरह हत्या के बल खेत चरने को तैयार हो? लाट साहब चाहें, तो आज रेल बन्द कर दें, डाक बन्द कर दें, माल का आना-जाना बन्द कर दें। तब बताओ, क्या करोगे? वह चाहें, तो आज सारे शहर वालों को जेल में डाल दें। बताओ, क्या करोगे? तुम उनसे भागकर