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सत्याग्रह

कहाँ जा सकते हो? है कहीं का ठिकाना? इसलिए जब इसी देश में और उन्हीं के अधीन रहना है, तो इतना उपद्रव क्यों मचाते हो? याद रखो, तुम्हारी जान उनकी मुट्ठी में है। ताऊन के कीड़े फैला दें, तो सारे नगर में हाहाकार मच जाय। तुम झाड़ू से आँधी को रोकने चले हो? ख़बरदार, जो किसी ने बाज़ार बन्द किया नहीं तो कहे देता हूँ, यहीं अन्नजल बिना प्राण दे दूँगा।

एक आदमी ने शंका की—महाराज, आपके प्राण निकलते-निकलते महीने भर से कम न लगेगा। तीन दिन में क्या होगा?

मोटेराम ने गरजकर कहा—प्राण शरीर में नहीं रहता, ब्रह्माण्ड में रहता है। मैं चाहूँ, तो योग-बल से अभी प्राण-त्याग कर सकता हूँ। मैंने तुम्हें चेतावनी दे दी; अब तुम जानो, तुम्हारा काम जाने। मेरा कहना मानोगे, तो तुम्हारा कल्याण होगा। न मानोगे, तो हत्या लगेगी, संसार में कहीं मुँह न दिखा सकोगे। बस, यह लो मैं यहीं आसन जमाता हूँ।

(३) शहर में यह समाचार फैला, तो लोगों के होश उड़ गये। अधिकारियों की इस नई चाल ने उन्हें हतबुद्धि-सा कर दिया। कांग्रेस के कर्मचारी तो अब भी कहते थे—यह सब पाखण्ड है। राजभक्तों ने पण्डित को कुछ दे-दिलाकर यह स्वाँग खड़ा किया है। जब और कोई बस न चला, फ़ौज, पुलिस, क़ानून, सभी युक्तियों से हार गये, तो यह नई माया रची है। यह और कुछ नहीं, राजनीति का दिवाला है। नहीं तो पंडितजी ऐसे कहाँ के देश-सेवक थे, जो देश की दशा से दुःखी होकर व्रत ठानते। इन्हें भूखों मरने दो, दो दिन में चें बोल जायँगे। इस नई चाल की जड़ अभी से काट देनी चाहिये। कहीं यह चाल सफल हो गई, तो समझ लो, अधिकारियों के हाथ में एक नया शस्त्र आ जायगा, और वह सदैव इसका प्रयोग करेंगे। जनता इतनी समझदार तो है नहीं, कि इन रहस्यों को समझे। गीदड़-भबकी में आ जायगी।

लेकिन नगर के बनिये-महाजन, जो प्रायः धर्म-भीरु होते हैं, ऐसे