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पृष्ठ:प्रेम-द्वादशी.djvu/९२

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सत्याग्रह

इन यमदूतों को कैसे टालूँ? ख़ामख़ाह इन पाजियों को यहाँ खड़ा कर दिया! मैं कोई कैदी तो हूँ नहीं, कि भाग जाऊँगा।

अधिकारियों ने शायद यह व्यवस्था इसलिए कर रखी थी, कि कांग्रेसवाले ज़बरदस्ती पंडितजी को वहाँ से भगाने की चेष्टा न कर सकें। कौन जाने, वे क्या चाल चलें। कहीं किसी कुत्ते ही को उन पर छोड़ दें, या दूर से पत्थर पर फेंकने लगें! ऐसे अनुचित और अपमानजनक व्यवहारों से पंडितजी की रक्षा करना अधिकारियों का कर्तव्य था।

वह अभी इसी चिन्ता में थे, कि व्यापारियों का डेपुटेशन आ पहुँचा। पंडितजी कुहनियों के बल लेटे हुए थे, सँभल बैठे। नेताओं ने उनके चरण छूकर कहा—महाराज, हमारे ऊपर आपने क्यों यह कोप किया है? आपकी जो आज्ञा हो, वह हम शिरोधार्य करें। आप उठिये, अन्न-जल ग्रहण कीजिये। हमें नहीं मालूम था, कि आप सचमुच यह व्रत ठाननेवाले हैं; नहीं तो हम पहले ही आपसे विनती करते। अब कृपा कीजिये, दस बजने का समय है। हम आपका वचन कभी न टालेंगे।

मोटे॰—ये कांग्रेसवाले तुम्हें मटिया-मेट करके छोड़ेंगे! आप तो डूबते ही हैं, तुम्हें भी अपने साथ ले डूबेंगे। बाज़ार बन्द रहेगा, तो इससे तुम्हारा ही टोटा होगा; सरकार को क्या? तुम नौकरी छोड़ दोगे, आप भूखों मरोगे; सरकार को क्या? तुम जेल जाओगे आप चक्की पीसोगे, सरकार को क्या? न जाने इन सबको क्या सनक सवार हो गई है, कि अपनी नाक कटाकर दूसरों का असगुन मनाते हैं। तुम इन कुपंथियों के कहने में न आओ। क्यों, दूकानें खुली रखोगे?

सेठ—महाराज, जब तक शहर-भर के आदमियों की पंचायत न हो जाय, तब तक हम इसका बीमा कैसे ले सकते हैं? कांग्रेसवालों ने कहीं लूट मचवा दी, तो कौन हमारी मदद करेगा? आप उठिये, भोजन पाइये, हम कल पंचायत करके आपकी सेवा में जैसा कुछ होगा, हाल देंगे।

मोटे॰—तो फिर पंचायत करके आना।