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प्रेम-द्वादशी

बहत हताश हुए। मिठाई बहुत कम बच रही थी। पाँच-छः चीजें थीं; मगर किसी में दो अदत से ज़्यादा निकलने की गुंजाइश न थी। भंडा फूट जाने का खटका था। पंडितजी ने सोचा, इतने से क्या होगा? केवल क्षुधा और प्रबल हो जायगी, शेर के मुँह खून लग जायगा! गुनाह वेलज्ज़त है। अपनी जगह पर आ बैठे; लेकिन दम भर के बाद प्यास ने फिर ज़ोर किया। सोचे, कुछ तो ढारस हो ही जायगा। आहार कितना ही सूक्ष्म हो, फिर भी आहार ही है। उठे, मिठाई निकाली; पर पहला ही लड्डू मुँह में रखा था, कि देखा खोंचेवाला तेल की कुप्पी जलाये क़दम बढ़ाता चला आ रहा है। उसके पहुँचने के पहले मिठाई का समाप्त हो जाना अनिवार्य था। एक साथ दो चीजें मुँह में रखीं। अभी चबला ही रहे थे, कि वह निशाचर दस क़दम और आगे बढ़ आया। एक साथ चार चीजें मुँह में डालीं और अधकुचली ही निगल गये। अभी छः अंदतें और थीं, और खोंचेवाला फाटक तक आ चुका था। सारी-की-सारी मिठाई मुँह में डाल ली। अब न चबाते बनता है, न उगलते। वह शैतान मोटरकार की तरह कुप्पी चमकता हुआ चला ही आता था। जब वह बिलकुल सामने आ गया, तो पंडितजी ने जल्दी से सारी मिठाई निगल ली; मगर आखिर आदमी ही थे, कोई मगर तो थे नहीं, आँखों में पानी भर आया, गला फँस गया, शरीर में रोमांच हो आया, ज़ोर से खाँसने लगे। खोंचेवाले ने तेल की कुप्पी बढ़ाते हुये कहा—यह लीजिये, देख लीजिये, चले तो हैं आप उपवास करने पर प्राणों का इतना डर है। आपको क्या चिन्ता, प्राण भी निकल जायँगे, तो सरकार बाल-बच्चों की परवस्ती करेगी।

पंडितजी को क्रोध तो ऐसा आया, कि इस पाजी को खोटी-खरी सुनाऊँ, लेकिन गले से आवाज़ न निकली। कुप्पी चुपके से ले ली, और झूठ-मूठ इधर-उधर देखकर लौटा दी।

खोंचावाला—आपको क्या पड़ी थी, जो चले सरकार का पच्छ करने? कहीं कल दिन-भर पंचायत होगी, तो रात तक कुछ तय होगा। तब तक को आपकी आँखों में तितलियाँ उड़ने लगेंगी।