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सत्याग्रह


यह कह कर वह चला गया और पंडितजी भी थोड़ी देर तक खाँसने के बाद सो रहे।

(५)

दूसरे दिन सवेरे ही से व्यापारियों ने मिस्कौट करनी शुरू की। उधर कांग्रेसवालों में भी हलचल मची। अमन-सभा के अधिकारियों ने भी कान खड़े किये। यह तो इन भोले-भाले बनियों को धमकाने की अच्छी तरकीब हाथ आई। पंडित-समाज ने अलग एक सभा की, और उसमें यह निश्चय किया, कि पंडित मोटेराम को राजनीतिक मामलों में पड़ने का कोई अधिकार नहीं है। हमारा राजनीति से क्या संबन्ध? ग़रज़ सारा दिन इसी वाद-विवाद में कट गया और किसी ने पंडितजी की ख़बर न ली। लोग खुल्लम-खुल्ला कहते थे, कि पंडितजी ने एक हज़ार रुपए सरकार से लेकर यह अनुष्ठान किया है। बेचारे पंडितजी ने रात तो लोट-पोटकर काटी; पर उठे तो शरीर मुरदा-सा जान पड़ता था। खड़े होते थे, तो आँखें तिल मिलाने लगती थीं, सिर में चक्कर आ जाता था। पेट में जैसे कोई बैठा हुआ कुरेद रहा हो! सड़क की तरफ़ आँखें लगी हुई थीं, कि लोग मनाने तो नहीं आ रहे हैं। संध्योपासन का समय इसी परीक्षा में कट गया। इस समय पूजन के पश्चात् नित्य नाश्ता किया करते थे। आज अभी मुँह में पानी भी न गया था। न जाने वह शुभ घड़ी कब आवेगी। फिर पंडिताइन पर क्रोध आने लगा। आप तो रात को भर-पेट खाकर सोई होगी, इस वक्त भी जलपान कर चुकी होगी; पर इधर भूलकर भी न झाँका, कि मरे या जीते हैं। कुछ बात करने ही के बहाने से क्या थोड़ा-सा मोहनभोग बनाकर न ला सकती थी? पर किसे इतनी चिंता है? पर रुपए लेकर रख लिये, फिर जो कुछ मिलेगा, वह भी रख लेगी। मुझे अच्छा उल्लू बनाया?

क़िस्सा-कोताह, पंडितजी ने दिन-भर इन्तज़ार किया; पर कोई मनानेवाला नज़र न आया। लोगों के दिल में यह सन्देह पैदा हुआ था, कि पंडितजी ने कुछ ले-देकर यह स्वाँग रचा है, स्वार्थ के वशीभूत होकर यह पाखण्ड खड़ा किया, वही उनको मनाने में बाधक होता था।