पृष्ठ:प्रेम-पंचमी.djvu/१२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११४
प्रेम-पंचमी

आप-ही-आप सत्यप्रकाश को कोसने लगती—वही मेरे प्राणों का घातक है। तल्लीनता उन्माद का प्रधान गुण है। तल्लीनता अत्यंत रचनाशील होती है। वह आकाश में देवताओ के विमान उड़ाने लगती है। अगर भोजन में नमक तेज़ हो गया, तो यह शत्रु ने कोई रोड़ा रख दिया होगा। देवप्रिया को अब कभी-कभी धोखा हो जाता कि सत्यप्रकाश घर में आ गया है, वह मुझे मारना चाहता है, ज्ञानप्रकाश को विष खिलाए देता है। एक दिन उसने सत्यप्रकाश के नाम एक पत्र लिखा, और उसमे जितना कोसते बना, कोसा―तू मेरे प्राणो का वैरी है, मेरे कुल का घातक है, हत्यारा है। वह कौन दिन आवेगा कि तेरी मिट्टी उठेगी। तूने मेरे लड़के पर वशीकरण-मंत्र चला दिया है। दूसरे दिन फिर ऐसा ही एक पत्र लिखा, यहाँ तक- कि यह उसका नित्य का कर्म हो गया। जब तक एक चिट्ठी में सत्यप्रकाश को गालियाँ न दे लेती, उसे चैन ही न आता! इन पत्रो को वह कहारिन के हाथ डाकवर भिजवा दिया करती थी।

( १० )

ज्ञानप्रकाश का अध्यापक होना सत्यप्रकाश के लिये घातक हो गया। परदेश मे उसे यही संतोष था कि मैं संसार में निरा- धार नहीं हूँ। अब यह अवलंब जाता रहा। ज्ञानप्रकाश ने ज़ोर देकर लिखा―अब आप मेरे हेतु कोई कष्ट न उठावें। मुझे अपनी गुज़र करने के लिये काफी से ज्यादा मिलने लगा है।

यद्यपि सत्यप्रकाश की दूकान खूब चलती थी, लेकिन कल-