सिविल सर्विस। लेकिन आज तक न सुना कि कोई एडीटरी का काम सीखने गया हो। क्यों सीखे? किसी को क्या पड़ी है कि जीवन की महत्त्वाकांक्षाओं को ख़ाक में मिलाकर त्याग और विराग में उम्र काटे। हाँ, जिनको सनक सवार हो गई हो, उनकी बात ही निराली है।
ईश्वरचंद्र―जीवन का उद्देश्य केवल धन-संचय करना ही नहीं है।
मानकी―अभी तुमने वकीलों को निंदा करते हुए कहा, ये लोग दूसरो की कमाई खाकर मोटे होते हैं। पत्र चलाने- वाले भी तो दूसरों की ही कमाई खाते हैं।
ईश्वरचंद्र ने बग़ले झाँकते हुए कहा―“हम लोग दूसरों की कमाई खाते है, तो दूसरों पर जान भी देते हैं। वकीलों की भाँति किसी को लूटते नहीं।”
मानकी―यह तुम्हारी हठधर्मी है। वकील भी तो अपने मुवक्किलो के लिये जान लड़ा देते है। उनकी कमाई भी उतनी ही हलाल है, जितनी पत्रवालो की। अंतर केवल इतना है कि एक की कमाई पहाड़ी सोता है, दूसरे की बरसाती नाला। एक में नित्य जल-प्रवाह होता है, दूसरे मे नित्य धूल उड़ा करती है। बहुत हुआ, तो बरसात में घड़ी-दो घड़ी के लिये पानी आ गया।
ईश्वर॰―पहले तो मैं यही नहीं मानता कि वकीलों की कमाई हलाल है, और मान भी लूँँ, तो किसी तरह यह नहीं