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मृत्यु के पीछे

मानकी―कोई सुयोग्य सहायक क्यों नहीं रख लेते?

ईश्वरचद्र ने ठंढी साँस लेकर कहा―“बहुत खोजता हूँ, पर कोई नहीं मिलता। एक विचार कई दिनो से मेरे मन में उठ रहा है, अगर तुम धैर्य से सुनना चाहो, तो कहूँ।”

मानकी―कहो, मानने लायक होगा, तो मानूँँगी क्यों नहीं!

ईश्वरचंद्र―मैं चाहता हूँ कि कृष्णचंद्र को अपने काम में शरीक कर लूँँ। अब तो वह एम्॰ ए॰ भी हो गया। इस पेशे से उसे रुचि भी है। मालूम होता है, ईश्वर ने उसे इसी काम के लिये बनाया है।

मानकी ने अवहेलना-भाव से कहा―“क्या अपने साथ उसे भी ले डूबने का इरादा है? कोई घर की सेवा करनेवाला भी चाहिए कि सब देश को ही सेवा करेगे।”

ईश्वर॰―कृष्णचंद्र यहाँ बुरा न रहेगा।

मानकी―क्षमा कीजिए। बाज़ आई। वह कोई दूसरा काम करेगा, जहाँ चार पैसे मिले। यह घर-फूँँक काम आप ही को मुबारक रहे।

ईश्वर॰―वकालत में भेजोगी, पर देख लेना, पछताना पड़ेगा। कृष्णचंद्र उस पेशे के लिये सर्वथा अयोग्य है।

मानकी―वह चाहे मजूरी करे, पर इस काम में न डालूँँगी।

ईश्वर॰―तुमने मुझे देखकर समझ लिया कि इस काम में घाटा-ही-घाटा है। पर इसी देश में ऐसे भाग्यवान् लोग