पृष्ठ:प्रेम-पंचमी.djvu/३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५
आभूषण

बदले रुपए कमाते, तो पैसों की जगह रुपए खर्च भी कर डालते थे। किसी की देह पर साबित कपड़े तक न थे। पर विमल उन गिनती के दो-चार मज़दूरों में से था, जो संयम से रहते थे, जिनके जीवन का उद्देश्य खा-पीकर मर जाने के सिवा कुछ और भी था। थोड़े ही दिनों में उसके पास थोड़ी-सी संपत्ति हो गई। धन के साथ और मजदूरों पर दबाव भी बढ़ने लगा। यह प्रायः सभी जानते थे कि विमल जाति का कुलीन ठाकुर है। सब ठाकुर ही कहकर उसे पुकारते। संयम और आचार सम्मान-सिद्धि के मंत्र हैं। विमल मज़दूरों का नेता और महाजन हो गया।

विमल को रंगून में काम करते तीन वर्ष हो चुके थे। संध्या हो गई थी। वह कई मज़दूरों के साथ समुद्र के किनारे बैठे बाते कर रहा था।

एक मज़दूर ने कहा―यहाँ की सभी स्त्रियाँ निठु होती हैं। बेचारा झींगुर १० बरस से उस बर्मी स्त्री के साथ रहता था। कोई अपनी व्याही जोरू से भी इतना प्रेम न करता होगा। उस पर इतना विश्वास करता था कि जो कुछ कमाता, उसके हाथ में रख देता। तीन लड़के थे। अभी कल तक दोनो साथ- साथ खाकर लेटे थे। न कोई लड़ाई, न झगड़ा; न बात न चीत; रात को औरत न-जाने कब उठी, और न जाने कहाँ चली गई। लड़कों को छोड़ गई। बेचारा झींगुर बैठा रो रहा है। सबसे बड़ी मुशकिल तो छोटे बच्चे की है। अभी कुल छः महीने का है। कैसे जिएगा, भगवान् ही जाने।