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पृष्ठ:प्रेम-पंचमी.djvu/३६

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प्रेम-पंचमी

विचलित हो सकता है। पर अंधकार में किसका साहस है, जो लीक से जौ-भर भी हट सके।

विमल के पास विद्या न थी, कला-कौशल भी न था; उसे केवल अपने कठिन परिश्रम और कठिन आत्मत्याग ही का आधार था। वह पहले कलकत्ते गया। वहाँ कुछ दिन तक एक सेठ की दरबानी करता रहा। वहाँ जो सुन पाया कि रंगून में मजदूरी अच्छी मिलती है, तो रंगून जा पहुँचा, और बंदर पर माल चढ़ाने-उतारने का काम करने लगा।

कुछ तो कठिन श्रम, कुछ खाने-पीने के असंयम और कुछ जल-वायु की ख़राबी के कारण वह बीमार हो गया। शरीर दुर्बल हो गया, मुख की कांति जाती रही; फिर भी उससे ज्यादा मेह- नती मज़दूर बंदर पर दूसरा न था। और मज़दूर मज़दूर थे, पर यह मज़दूर तपस्वी था। मन में जो कुछ ठान लिया था, उसे पूरा करना ही उसके जीवन का एक-मात्र उद्देश्य था।

उसने घर को अपना कोई समाचार न भेजा। अपने मन से तर्क किया, घर में कौन मेरा हितू है? गहनो के सामने मुझे कौन पूछता है? उसकी बुद्धि यह रहस्य समझने में असमर्थ थी कि आभूषणों की लालसा रहने पर भी प्रणय का पालन किया जा सकता है! और मज़दूर प्रातःकाल सेरो मिठाई खाकर जल-पान करते; दिन-भर―दम-दस-भर पर―गाँजे, चरस और तमाखू के दम लगाते; अवकाश पाते, तो बाज़ार की सैर करते। कितनों ही को शराब का भी शौक था। पैसों के