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प्रेम-पंचमी

क्यों नहीं दी? बदसूरत क्यों बनाया? बहन, स्त्री के लिये इससे अधिक दुर्भाग्य की बात नहीं कि वह रूप-हीन हो। शायद पुरबले जनम की पिशाचिनियाँ ही बदसूरत औरतें होती है। रूप से प्रेम मिलता है, और प्रेम से दुर्लभ कोई वस्तु नहीं।

यह कहकर मंगला उठ खड़ी हुई। शीतला ने उसे रोका नहीं। सोचा―इसे खिलाऊँगी क्या, आज तो चूल्हा जलने की कोई आशा नहीं।

उसके जाने के बाद वह बहुत देर तक बैठी सोचती रही― मैं कैसी अभागिन हूँ। जिस प्रेम को न पाकर यह बेचारी जीवन को त्याग रही है, उसी प्रेम को मैने पाँव से ठुकरा दिया! इसे ज़वर की क्या कमी थी? क्या ये सारे जड़ाऊ जे़वर इसे सुखी रख सके? इसने उन्हें पाँव से ठुकरा दिया। उन्हीं आभूषणों के लिये मैने अपना सर्वस्व खो दिया। हा! न-जाने वह (विमलसिंह ) कहाँ है, किस दशा में है!

अपनी लालसा को, तृष्णा को, वह कितनी ही बार धिक्कार चुकी थी। शीतला की दशा देखकर आज उसे आभूषणो से घृणा हो गई।

विमल को घर छोड़े दो साल हो गए थे। शीतला को अब उनके बारे में भाँति-भाँँति की शंकाएँ होने लगी। आठो पहर उसके चित्त में ग्लानि और क्षोभ की आग सुलगती।

दिहात के छोटे-मोटे ज़मीदारों का काम डाँट-डपट, छीन-