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प्रेम-पंचमी

सकता। उनका रोब सभी पर छाया हुआ था। फिरंगियों पर उनकी कड़ी निगाह रहती। हुक्म था कि कोई फिरंगी बाज़ार में आवे, तो थाने का सिपाही उसकी देख-भाल करता रहे। इसी वजह से फिरंगी उनसे जला करते थे। आख़िर सबने रोशनुद्दौला को मिलाकर बख्तावरसिंह को बेकुसूर कैद करा दिया। बस, तब से बाज़ार में लूट मची हुई है। सरकारी अमले अलग लूटते हैं; फिरंगी अलग नोचते-खसोटते हैं। जो चीज़ चाहते हैं, उठा ले जाते हैं। दाम माँँगो, तो धमकियाँ देते हैं। शाही दरबार में फरियाद करो, तो उलटे सज़ा होती है। अभी हाल ही में हम सब मिलकर बादशाह सलामत की ख़िद- मत में हाज़िर हुए थे। पहले तो वह बहुत नाराज़ हुए, पर आख़िर रहम आ गया। बादशाहों का मिज़ाज ही तो है। हमारी सब शिकायते सुनीं, और तसकीन दी कि हम नहकीक़ात करेंगे। मगर अभी तक तो वही लूट-खसोट जारी है।

इतने में तीन आदमी राजपूती ढंग की मिर्ज़ई पहने आकर दूकान के सामने खड़े हो गए। माधोदास उनका रंग-ढंग देख- कर चौका। शाही फौज के सिपाही बहुधा इसी सज-धज से निकलते थे। तीनो आदमी भी सौदागर को देखकर ठिठके; पर उसने उन्हे कुछ ऐसी निगाहों से देखा कि तीनो आगे चले गए। तब सौदागर ने माधोदास से पूछा―“इन्हें देखकर तुम क्यों चौके?”

माधोदास ने कहा―ये फौज के सिपाही हैं। जब से