सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रेम-पंचमी.djvu/९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८२
प्रेम-पंचमी

राजा―आपने तो इसे मेरे सिपुर्द कर दिया है। दी हुई चीज़ को आप वापस कैसे लेंगे?

बादशाह ने कहा―तुमने मेरे निकलने का कहीं रास्ता ही नहीं रक्खा।

रोशनुद्दौला की जान बच गई। वज़ारत का पद कप्तान साहब को मिला। मगर सबसे विचित्र बात यह थी कि रेजी डेंट ने इस षड्यंत्र से पूर्ण अनभिज्ञता प्रकट की, और साफ लिख दिया कि बादशाह सलामत अपने अँगरेज़ मुसाहबो को चाहे जो सज़ा दे, मुझे कोई आपत्ति न होगी। मैं उन्हे पाता, तो स्वयं बादशाह की खिदमत में भेंज देता, लेकिन पाँचो महानुभावों में से एक का भी पता न चला। शायद वे सब-के-सब रातो- रात कलकत्ते भाग गए थे। इतिहास में उक्त घटना का कही उल्लेख नहीं किया गया; लेकिन किवदंतियाँ, जो इतिहास से अधिक विश्वसनीय हैं, उसकी सत्यता की साक्षी हैं।


__________