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पृष्ठ:प्रेम-पंचमी.djvu/९५

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अधिकार-चिंता

( १ )

टामी यों देखने में तो बहुत तगड़ा था। भूँकता, तो सुनने- वालों के कानों के परदे फट जाते। डील-डौल भी ऐसा कि अँधेरी रात में उस पर गधे का भ्रम हो जाता। लेकिन उसकी श्वानाचित वीरता किसी संग्राम-क्षेत्र में प्रमाणित न होती थी। दो-चार दफ जब बाज़ार के लेंडियों ने उसे चुनौती दी, तो वह उनका गर्व-मर्दन करने के लिये मैदान में आया। देखनेवालों का कहना है कि वह जब तक लड़ा, जीवट से लड़ा; नर्खा और दाँता से ज्यादा चाटे उसकी दुम ने की। निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि मैदान किसके हाथ रहता, किंतु जब उस दल को कुमक मँगानी पड़ी, तो रण-शास्त्र के नियमों के अनुसार विजय का श्रेय टामी को ही देना उचित न्याया- नुकूल जान पड़ता है। टामी ने उस अवसर पर कौशल से काम लिया और दाँत निकाल दिए, जो संधि की याचना थी। किंतु तब से उसने ऐसे सन्नीति-विहीन प्रतिद्वंद्वियों के मुँँह लगना उचित न समझा।

इतना शांति-प्रिय होने पर भी टामी के शत्रुओं की संख्या दिनोदिन बढ़ती जाती थी। उसके बराबरवाले तो उससे इस- लिये जलते कि वह इतना मोटा ताजा होकर इतना भीरु क्यों