पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१००

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धर्म-संकट- "पुरुषों और स्त्रियोंमें बड़ा अन्तर है, तुम लोगोंका हृदय शीशेकी तरह कठोर होता है और हमारा हृदय नरम, वह विरह- की ऑच नहीं सह सकता।' शीशा ठेस लगते ही टूट जाता है । नरम वस्तुमि लचक होती है। 'चलो, बातें न बनाओ। दिनभर तुम्हारी राह देखू, रात- भर घड़ीकी सूइयॉ, तब कही आपके दर्शन होते हैं।' मैं तो सदैव तुम्हें अपने हृदय मन्दिरमें छिपाए रखता हूँ।' ठीक बतलाओ कब आओगे" 'ग्यारह बजे, परन्तु पिछला दरवाजा खुला रखना।' 'उसे मेरे नयन समझो। 'अच्छा तो अब बिदा। [२] पनिहत कैलाशनाथ लखनऊके प्रतिष्ठित बैरिष्टरोंमेंसे थे। कई सभाओंके मन्त्री, कई समितियोंके सभापति, पत्रोंमें अच्छे. अच्छे लेख लिखते प्लेटफार्मपर सारगर्भित व्याख्यान देते। पहले पहल जब यह यूरोपसे लौटे थे तो यह उत्साह अपनी पूरी उमनपर था परन्तु ज्यों-ज्यों बैरिस्टरी चमकने लगी। इस