पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/२०७

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महातीर्थ इन्द्रमशिने झुसलाकर कहा-तुम्हें बैठे बैठाये एक-न एक खुचड़ सूझनी ही रहती है। सुखदाने दिनककर कहा-हाँ, मुझे तो इसका रोग है। क्या करूँ, स्वभाव ही ऐसा है। तुम्हें यह बहुत प्यारी है तो ले जाकर गलेमें बॉध लो, मेरे यहाँ जरूरत नहीं है। दाई घरसे निकली तो ऑखे डबडबाई हुई थी। हृदय रुद्र- मणिके लिये तड़प रहा था। जी चाहता था कि एक बार बालकको लेकर प्यार कर लूं। पर यह अभिलाषा लिये हुए ही उसे घरमे बाहर निकलना पड़ा। रुद्रमणि दाईके पीछे-पीछे दरवाजेतक आया, पर दाईने जब दरवाजा बाहरसे बन्द कर दिया तो वह मचलकर जमीनपर लोट गया और अन्ना अन्ना कहकर रोने लगा। सुखदाने चुम- कारा, प्यार किया, गोद में लेनेकी कोशिश की, मिठाई देनेका लालच दिया, मेला दिखानेका वादा किया, इससे जब काम न चला तो बन्दर, सिपाही, लूलू और हौआकी धमकी दी। पर रुद्रने वह रौद्र भाव धारण किया, कि किसी तरह चुप न हुआ। यहॉतक कि सुखदाको क्रोध आ गया, बच्चेको वहीं छोड़ दिया और आकर घरके धन्धे में लग गयी। रोते-रोते रुद्रका मुँह और गाल लाल हो गये, ऑखें सूज गयी। निदान वह वहीं जमीनपर सिसकते सिसकते सो गया। सुखदाने समझा था कि बच्चा थोड़ी देरमें रो-धोकर चुप हो नायगा। पर रुद्रने जागते ही अन्नाकी रट लगायी। वौन बजे