पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/२०८

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प्रेम-पूर्णिमा २०८ इन्द्रमणि दफ्तरसे आये और बच्चेकी यह दशा देखी तो स्त्रीको तरफ कुपित नेत्रोंमे देखकर उसे गोदमे उठा लिया और बहलाने लगे। जब अन्तमे रुद्रको यह विश्वास हो गया कि दाई मिठाई लेने गयी है तो उसे सन्तोष हुआ। परन्तु शाम होते ही उसने फिर झीखना शुरू किया--अन्ना ! मिठाई ला | इस तरह दो-तीन दिन बीत गये । रुद्रको अन्नाकी रट लगाने और रोनेके सिवा और कोई काम न था। वह शान्तप्रकृति कुत्ता जो उसकी गोद से एक क्षण के लिए भी न उतरता था, वह मौनव्रतधारी बिल्ली जिसे ताख पर देखकर वह खुशीसे फूला न समाता था, वह पङ्खहीन चिडिया जिसपर वह जान देता था, सब उसके चित्तसे उतर गये। वह उनकी तरफ आँख उठाकर भी न देखता। अन्ना जैसी जीती जागती, प्यार करनेवाली, गोदमें लेकर घुमानेवाली, थपक-थपककर सुलानेवाली, गा-गाकर खुश करनेवाली चीनका स्थान उन निर्जीव चीजोंसे पूरा न हो सकता था । वह अकसर सोते सोते चौंक पड़ता और अन्ना-अन्ना पुकारकर हाथोंसे इशारा करता, मानों उसे बुला रहा है । अन्ना की खाली कोठरीमे घटों बैठा रहता। उसे आशा होती कि अन्ना यहाँ आती होगी। इस कोठरीका दरवाजा खुलते सुनता तो अमा । अन्ना | कहकर दौड़ता। समझता कि अन्ना आ गयी। उसका भरा हुआ शरीर धुल गया गुलाब जैसा चेहरा सूख गया, माँ और बाप उसकी मोहनी हँसीके लिये तरस कर रह जाते थे । यदि बहुत गुदगुदाने या छेड़नेसे हँसता भी तो ऐसा जान पड़ता था कि दिलसे नहीं हँसता, केवल दिल रखनेके लिये हस