पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/२१९

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२१९ महातीर्थ तब यकायक दाईके गलेसे लिपटकर बोला-अन्ना आई ! अन्ना आई। रुद्रका पीला मुर्शाया हुआ चेहरा खिल उठा, जैसे बुझते हुए दीपकमें तेल पड़ जाय | ऐसा मालूम हुआ मानों वह कुछ बढ़ गया है। एक हफ्ता बीत गया। प्रातःकालका समय था । रुद्र ऑगन- मे खेल रहा था। इन्द्रमणिने बाहरसे आकर उसे गोदमें उठा लिया और प्यारसे बोले-तुम्हारी अमाको मारकर भगा दे? रुद्रने मुंह बनाकर कहा-नही रोयेगी। कैलासी बोली-क्यों बेटा, तुमने तो मुझे बद्रीनाथ नहीं जाने दिया। मेरी यात्राका पुण्य-फल कौन देगा? इन्द्रमणिने मुस्कुराकर कहा-तुम्हें उससे कही अधिक पुण्य हो गया। यह तीर्थ महातीर्थ