पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/५

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प्रेम पूर्णिमा ईश्वरीय न्याय- कानपुरके जिलेमें पण्डित भृगुदत्त नामक एक बड़े जमींदार थे । मुन्शी सत्यनारायण उनके कारिन्दा थे। वह बड़े स्वामिभक्त और सच्चरित्र मनुष्य थे। लाखो रुपयेकी तहसील और हजारों मन अनाजका लेन-देन उनके हाथमें था, पर कभी उनकी नीयत डांवाडोल न होती। उनके सुप्रबन्धसे रियासत दिनों- दिन उन्नति करती जाती थी। ऐसे कर्मपरायण सेवकका जितना सम्मान होना चाहिए, उससे कुछ अधिक ही होता था। दुःख सुखके प्रत्येक अवसरपर परिडतजी उनके साथ बड़ी उदारतासे पेश आते। धीरे धीरे मुशीजीका विश्वास इतना बहा कि पण्डित- जीने हिसाब-किताबका समझना भी छोड़ दिया। सम्भव है, उनमें आजीवन इसी तरह निभ जाती, पर भावी प्रबल है। प्रयागमें कुम्भ लगा तो पंडितजी भी स्नान करने गये । वहॉसे लौटकर फिर वे घर न आये। मालूम नहीं, किसी गढ़ेमें फिसल पढ़ें या कोई जल-जन्तु उन्हें खींच ले गया, उनका फिर कुछ पता ही न चला। अब मुन्शी सत्यनारायण के अधिकार और भी बढ़े। एक हतभारिनी विधवा और दो छोटे-छोटे बालकोंके